॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
देव गन्धर्व अपसरा आय। बास तुम पर करिहैं सुख पाय॥
तुम्हैं अब पठै देंय सुखदाय। जहाँ से आये तहाँ को भाय॥
सुनैं यह बचन राम के भाय। आवरण ते गिरि प्रगतै आय॥
रूप ब्राह्मण का बृद्ध बनाय। परै चरनन में मन हर्षाय।३७६०।
उठै हरि उर में लेंय लगाय। प्रेम गिरि के उर नहीं समाय॥
कहै जय धन्य धन्य सुखदाय। जाय आवरण में फेरि समाय॥
प्रभु गिरि पर से उतर के भाय। चढ़ावैं धनुष दीन सुखदाय॥
बाण एक मारैं गिरि उठि जाय। पहुँचि जहँ से आयो तँह भाय॥
बाण फिरि आय पास में जाय। फेरि तरकस में बैठै भाय।३७७०।
बाण एक लेंय राम रघुराय। हाल सब वाको देंय बताय॥
जाव श्री अवध गुरु ढिग जाय। परय्यौ चरनन पहिले हर्षाय॥
फेरि परिकरमा कीन्हेउ धाय। परय्यौ फिरि चरनन में हर्षाय॥
संदेशा उठि कै श्रवण सुनाय। लौटि के आयो जलदी धाय॥
सुनाय के प्रभु शर देंय चलाय। चलै गुरु के ढिग पहुँचै जाय।३७८०।
परै चरनन में पहिले भाय। पांच फिरि फेरी लेय लगाय॥
परै चरनन में फिरि हर्षाय। उठै औ कहै संदेशा गाय॥
श्रवण बाँये ढिग शब्द सुनाय। सुनैं गुरु तन मन अति हर्षाय॥
लखन जी गये गुरु सुखदाय। संदेशा यही कहन हम आये॥
परै फिरि चरनन में हर्षाय। चलै प्रभु पास में पहुँचै आय।३७९०।
चरन में परि उठि कहै सुनाय। संदेशा कहि आयन सुखदाय॥
प्रभु कर लै उर लेंय लगाय। धरैं तरकस में मन हर्षाय॥
गुरु श्री राज भवन में जाँय। कहैं सब हाल प्रेम से गाय॥
संदेशा पुरी में देंय फिराय। खुशी सब में मुद मंगल छाय॥
बधाई गृह गृह बाजै भाय। गान धुनि से आकाश गुँजाय।३८००।
सुमित्रा कौशिल्या सुखदाय। केकयी संग में रहीं सुहाय॥
आय सातौं सै रानी जाँय। लुटावैं पट धन मणि भुषणाय॥
संदेशा भरत के पास में जाय। खुशी होवैं सुनि दोनो भाय॥
गुरु को सब रानी हर्षाय। देंय पट मणि भूषण धन लाय॥
चलैं गुरु भवन को मन हर्षाय। संग में धीमर सब लै जाँय।३८१०।
पहुँचि जब भवन में श्री गुरु जाँय। लेंय सामान सबै धरवाय॥
लौटि धीमर अपने गृह जाँय। मगन तन मन ते को कहि पाय॥
खबरि यह रावण को लगि जाय। लखन जी गये युद्ध हो भाय॥
पहुँचि तब कुम्भकरण ढिग जाय। जागने की बिरिआ गइ आय॥
भये पूरे छा महिना भाय। बैठि उठि तन में आलस छाय।३८२०।
बीचि में जागि सकै किमि भाय। सकै बरदान को कौन मिटाय॥
लखै ठाढ़ो रावण तहँ भाय। करै परनाम दोऊ कर लाय॥
कहै रावण सब चरित सुनाय। आदि से अन्त तलक सब गाय॥
लड़ाई राम से ठनि गइ भाय। उठौ अब चलौ लड़ौ सुखदाय॥
भखौ महिषा मेढ़ा चट भाय। पिओ मद तन में बल अधिकाय।३८३०।
कहै तब कुम्भकर्ण हर्षाय। सुनो भाई मेरे सुखदाय॥
कह्यौ जो हम से बचन सुनाय। तौन हम स्वप्न में देखा भाय॥
आपसे ज्ञानी को है भाय। रच्यौ सब के हित ठीक उपाय॥
मरै जो हरि के सन्मुख जाय। चलै बैकुण्ठ हिये हर्षाय॥
ऋच्छ बानर का रूप बनाय। राम संग सुर बहु आये भाय।३८४०।
लड़ैं हम उनके संग में भाय। श्राप सनकादिक की सुखदाय॥
नाम जय आप का सुनिये भाय। विजय अस नाम हमार कहाय॥
रहैं बैकुण्ठ के फाटक भाय। बिष्णु के द्वारपाल कहवाय॥
देव मुनि हरि दर्शन को जाँय। दूर ते कर जोरैं तब भाय॥
जारी........