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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

बिभीषण चले चरण परि धाय। बैठि जहँ पवन तनय सुखदाय॥

ख्याल में तत्पर धुनि के भाय। राम सिय झाँकी सन्मुख छाय॥

नहीं सुधि तनकौ कहँ को आय। बिभीषण पहुँचि गये हर्षाय।३१९०।

 

बैठिगे शान्त चित्त तहँ राय। उठे हनुमान बजे दश आय॥

चलैं हनुमान प्रभू ढिग धाय। सामने लखैं बिभीषण राय॥

निरखि के शान्त खड़े ह्वै जाँय। कहैं तब पवन तनय हर्षाय॥

कहाँ किरपा करि आये राय। बिभीषण कहैं आप शरणाय॥

प्रभू ने पठ्यो हम को भाय। नाम के जप की बिधि बतलाय।३२००।

 

करो इच्छा पूरण सुखदाय। जानिगे पवन तनय तब भाय॥

प्रभू की लीला मंगल दाय। पकरि कर बैठि गये हर्षाय॥

दीन फिर नाम की जप बतलाय। नाम धुनि खुली देर नहिं लाय॥

बदन के सब रोवन ते भाय। उठै धुनि र रंकार सुखदाय॥

राम सिय झाँकी सन्मुख आय। भई सो बरणौं को छबि भाय।३२१०।

 

बिभीषण मस्त नाम रंग छाय। भूलिगे प्रेम में कहँ ते आय॥

पकरि कर पवन तनय हर्षाय। लै गये प्रभु के ढिग भाय॥

निरखि के कहैं भक्त सुखदाय। पवन सुत काह भयो बतलाय॥

बिभीषण तव कर पकरि के आय। यहाँ से गये रहे हर्षाय॥

कहैं हनुमान आप किरपाय। जैस चाहो तस देव बनाय।३२२०।

 

बिभीषण पवन तनय संग आय। चरन पर परैं मनै हर्षाय॥

बिभीषण के शिर कर रघुराय। फेरि देवैं उर लेंय लगाय॥

बिभीषण बिनय करैं हर्षाय। जयति जय जय भक्तन सुखदाय॥

धन्य धनि धन्य देव मुनि राय। रहे सब नाम आप को गाय॥

तिमिर हट गई उजेरिया छाय। कहौं का मुख से अपनि बड़ाय।३२३०।

 

भागि के भरम शरम दोउ भाय। नाम धुनि खुली चित्त हर्षाय॥

रूप हरि आप औ सीता माय। भयो सन्मुख में तुरतै आय॥

कहौं मैं सत्य बचन सुखदाय। स्वपन में कभी न परय्यौ लखाय॥

कहैं प्रभु सुनो बिभीषण राय। पवन सुत की तुम पर किरपाय॥

जैस इच्छा उनके मन आय। वैस ही वा को देंय बनाय।३२४०।

 

सहारे भक्तन के हम राय। रहैं हर दम सुनिये चित लाय॥

पधारैं जैसे प्रतिमा लाय। लगावैं भोग तवै वह पाय॥

वैस ही हाल हमारो राय। प्रेम की फाँस फँस्यो मैं भाय॥

पवन सुत कीन्ह लीन मोहिं राय। प्रेम की प्रीति बड़ी सुखदाय॥

कहैं लछिमन तब बचन सुनाय। पवनसुत का ऋण कौन चुकाय।३२५०।

 

हमारी समरथ है नहि भाय। जैस इन कीन्ह हमहूँ करि पाँय॥

खाय फल रावण बाग में जाय। निशाचर मारे बृक्ष ढहाय॥

पकरि कर अक्षय कुमार को धाय। उठाय के पटक्यौ महि पर भाय॥

धरय्यौ दाहिन पग उर पर धाय। प्राण हरि पुर को दीन पठाय॥

बीरता लंक पुरी में जाय। दिखायो अपनी हाँक सुनाय।३२६०।

 

निशाचर आधे लंक के भाय। मारि कै अग्नि में दीन जलाय॥

मातु सुधि लाये देर न लाय। अंजनी पुत्र धन्य हैं भाय॥

कहैं हनुमान चरण शिर नाय। आप की किरपा ते बल आय॥

भला हम में क्या ताकत आय। करैं कोइ कार्य ठीक ह्वै जाय॥

आप उर प्रेरक हौ सुखदाय। नचावौ जस तस नाचैं भाय।३२७०।

 

आप सर्वस्व त्यागि संग आय। करत हौ राति दिवस सेवकाय॥

धन्य माता हैं आप की माय। धन्य पतनी की कीरति गाय॥

लखन तब कहैं पवन सुत भाय। बहुत तारीफ किहे का पाय॥

प्रभु के समुहे करत ढिठाय। प्रभु उर प्रेरक हमैं बताय॥

कहैं हनुमान सुनो सुखदाय। देव मुनि वेद शास्त्र सब गाय।३२८०।

जारी........