॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
गुरु हरि किरपा जब मिलि जाय। बतावैं भेद हिया हर्षाय॥
रूप हरि का हर दम सुखदाय। रहै सन्मुख देखत बनि आय॥
नाम धुनि रोम रोम खुलि जाय। रहै निर्भय निर्बैर सदाय।२६२०।
तत्व यह ज्ञान यथारथ आय। नाम में सूरति लेव लगाय॥
एक रस रहौ सदा सुख पाय। शोच को लेश न तन में लाय॥
कीन उपदेश मातु हर्षाय। मन्दोदरि गई परम निधि पाय॥
दिब्य अनुपम सीता रघुराय। सामने सुक्ख न हदय समाय॥
रोम प्रति रोम राम धुनि भाय। निकरती र रंकार सुखदाय।२६३०।
मंदोदरि तन मन ते हर्षाय। करै बिन्ती धनि धनि सिय माय॥
आप की लीला अगम है माय। शेष शारद नहिं सकत बताय॥
आप को आप जानतीं माय। करौ क्या लीला यश जग छाय॥
दीन औ अधमन पर सुखदाय। और को ेकिरपा करिहै आय॥
आपको फिकरि बड़ी है माय। जौन जेहि लायक जीव कहाय।२६४०।
देव जल भोजन वैसे माय। कर्म अनुकूल खात सुख पाय॥
करौ पल में परलय को माय। देव पल में सब फेरि बनाय॥
शरनि में अपनी लिहेव लगाय। बई किरतार्थ आज मैं माय॥
फूटिगा भरम का भाँड़ा माय। अखण्डानन्द आप किरपाय॥
प्रेम का सागर उमरय्यौ आय। मंदोदरि के मुख बोलि न जाय।२६५०।
गिरीं चरनन में मातु के धाय। मातु ने लीन्हेव तुरत उठाय॥
लगायो हिरदय में फिर माय। बैठि गईं माता मन हर्षाय॥
पकरि करि बैठारय्यौ तब माय। मन्दोदरि खड़ी नैन झरि लाय॥
भईं अन्तर माता सुखदाय। मन्दोदरि चली पिया ढिग धाय॥
नहीं शंका चनकौ तन आय। फ़ौज लै चलै लड़ै जिमि राय।२६६०।
नीति से चरन गह्यौ दोउ जाय। जैन मरजाद सनातन आय॥
खड़ी कर जोरि शीश निहुराय। करै बिनती दीनता सुनाय॥
आप स्वामी मेरे सुखदाय। खता मम माफ़ होय दुख जाय॥
कहेन जो अनुजित हम बचनाय। भयो आवेश हमैं कछु आय॥
तरंग में उसकी आप को राय। कहेन अनुचित सो देव भुलाय।२६७०।
आठ अवगुन अबलन उर लाय। पतिब्रत में पूरन जे राय॥
वेद औ शास्त्र आप कण्ठाय। आप को कौन सकै बतलाय॥
खता जो तीन बार ह्वै जाय। माफ़ सुर मुनि करते हर्षाय॥
आप की चेरी मैं सुखदाय। आप मम प्राण के प्राण हो राय॥
सदा आधीन आप के राय। जौन चाहै सो देव सजाय।२६८०।
सुनै यह बैन दशानन राय। लेय मन्दोदरि को उर लाय॥
करै फिर भोजन रावण राय। पदारथ भाँति भाँति सुखदाय॥
मन्दोदरि धरै सामने लाय। थार सोवरण का अति चमकाय॥
जड़े नग बाहेर शोभा छाय। उठै परकाश नैन चौंधाय॥
पियाला सोने के बहु लाय। थार में चहूँ दिशि दीन लगाय।२६९०।
जड़ी हीरन की कनी देखाय। श्वेत परकाश निकलती भाय॥
धरी झारी दस हेम कि भाय। पियै जल तिनमे रावण राय॥
समीप में रानी बैठी आय। चुकै जो वस्तु देय हर्षाय॥
पाय के कीन आचमनि राय। मन्दोदरि बीड़ा बीस लै आय॥
धरय्यौ थाली में समुहे आय। दशानन लीन उठाय के पाय।२७००।
कहै रानी सुनिये सुखदाय। बजे ग्यारह निशि के अब आय॥
जाव तुम उतरि भवन हर्षाय। करौ आराम वहीं सुखदाय॥
यहाँ हम रहैं बहुत सुखपाय। अकेले सुनो प्रिया चित लाय॥
युद्ध करि जीतैं हम रघुराय। प्रेम तब तुम से हो हर्षाय॥
कहै औ चलै दशानन राय। शैन के भौन में पहुँचै जाय।२७१०।
जारी........