॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
मुक्ति औ भक्ति मिलै नहि भाय। काम यह स्वामी का है भाय॥
आइहैं तब दीजै हर्षाय। देंय समुझाय पवन सुत भाय॥
उदधि तब जल भीतर जाय। चलैं हनुमान मातु ढिग जाँय॥
परैं चरनन में अति हर्षाय। मातु सिर पर कर देंय फिराय॥
कहैं तुम अजर अमर सुखदाय। कहैं फिर पवन तनय हुलसाय।१२००।
देहु कछु चीन्ह मोहिं अब माय। जाय कर प्रभुहि दिखावैं माय॥
देखि कर धीरज हरि को आय। देंय शिर से चूड़ामणि माय॥
बनी झाँकी शिव उमा कि भाय। लेंय तेहि पवन तनय हर्षाय॥
जाय कर प्रभु को देंय गहाय। निरखि कै हरि उर लेंय लगाय॥
कहैं तब चूड़ामणि हँसि भाय। चलौ जलदी हरि देर न लाय।१२१०।
मातु का बदन सूखिगा भाय। राति औ दिवस रहै चिन्ताय॥
आपु के बिना उन्हैं दुख भाय। खान औ पान न बचन सोहाय॥
गईं जब से हरि तब से भाय। नहीं भोजन जल तन नहवाय॥
दन्त धावन तक कीन न भाय। आपु पर रहीं अपन चित लाय॥
कान्ति दिन पर दिन बढ़तै जाय। आप का नाम बड़ा सुखदाय।१२२०।
गये अंजनि सुत तहाँ पै धाय़। बैठि अशोक बृक्ष चुपकाय॥
देखि कै माता का दुख भाय। नैन से नीर रहे झरि लाय॥
घड़ी दुइ बाद होश कछु आय। दीन मुंदरी तँह पर ढनगाय॥
गई आगे मुंदरी सुखदाय। निरखि कै माता लीन उठाय॥
मनै मन कहैं जानकी माय। मुद्रीका प्राण पती की आय।१२३०।
रची माया से ऐसि न जाय। दिब्य मुंदरी यह है सुखदाय॥
कहैं मुदरी से सिया सुनाय। कहौ तुम को यहँ पर को लाय॥
कहैं मुंदरी तब बैन सुनाय। होय परतीति मगन हों माय॥
जाँय तब उतरि पवन सुतधाय। परैं चरनन में उठा न जाय॥
परे कछु देर रहैं सुख पाय। मातु के चरनन नैन लगाय।१२४०।
उठैं कर जोरि के बैठें भाय। कहैं सब हाल आपका गाय॥
होय औरौ धीरज मन आय। कि जैसे रंक को धन मिलि जाय॥
मनै मन फूलो नहीं समाय। कह्यो माता हम से मुद दाय॥
सुनो चूड़ामणि तुम हर्षाय। कह्यो कछु हाल हमारो जाय॥
बिना पूँछे प्रभु के हर्षाय। कहेसि मुंदरी जब कहेन सुनाय।१२५०।
संदेसिया कच्चा ऐस कहाय। कहै तुरतै जस पहुँचै जाय॥
काम दूसर कोइ और न भाय। संदेसिया पक्का तौन कहाय॥
बिना पूँछे सब देय बताय। बचन चूड़ामणि के सुनि भाय॥
हँसे श्री राम लखन मरुताय। कहैं फिरि पवन तनय सब गाय॥
लंक जेहि बिधि जारय्यौ फल खाय। खुशी ह्वै राम लखन सुखदाय।१२६०।
लेंय मारुत सुत को उर लाय। कहैं लछिमन सुनिये मम भाय॥
कार्य्यतुम किहेव बड़ा सुखदाय। उऋण हम तुमसे हैं नहिं भाय॥
और क्या कहैं सुनो चितलाय। लै आये माता की सुधि धाय॥
बली तुम सम जग को है भाय। प्रभु चूड़ामणि को हर्षाय॥
धरय्यौ फेंटा में सुख से भाय। कहैं रघुनाथ भक्त सुखदाय।१२७०।
सुनो लछिमन भाई हर्षाय। बचन कपि ऋक्षन देव सुनाय॥
तयारी करैं लंक पर भाय। कहैं लछिमन सुनिये सब भाय॥
चलौ रावनपुर जीतन धाय। सुनत ही निर्भय कपि ऋक्षाय॥
खड़ें हों आकर कहा न जाय। एक ते एक बीर हैं भाय॥
नाम परताप बड़ा सुखदाय। कूदते ऊपर को सब भाय।१२८०।
उस समय की लीला को गाय। करैं गर्जना मेघ सम भाय॥
जारी........