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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जानकी लै दोउ कर जयमाल चलीं हर्षाय प्राण पति ओर।

संग सखी बहु मंगल गावैं सुन्दरि बयस किशोर।

देखत बनै कहै छबि को कबि आनन्द हिये हिलोर।

बिधि हरि हर के ईश जहाँ पर बैठे धनुष को तोर।

देखत छटा कटा सब ह्वैगे मुनि संग श्यामल गौर।५।

 

जनक क प्रण पूरन जिन कीन्हो ऐसे हैं बर जोर।

अभिमानिन के मूँह मसि लागी सूझत नहिं निशि भोर।

परशुराम को गर्भ खींचि उर में धरि लियो बटोर।

करि प्रणाम उत्तर दिशि चलि भे छूट्यौ तोर व मोर।

मौन भये पर्बत पर जाय के भजन कियो चित जोर।१०।

 

ठाढ़े एक पाँव कर जोरे प्रेम में सुधि बुधि छोर।

सात सहस्र बर्ष जब बीते शिव ने किये निहोर।

बाणी नभ ते भई ऐसि तँह गरजैं जिमि घनघोर।

मुक्ति भक्ति तुमको हम दीन्हीं अजर अमर तन तोर।

श्री किशोरी जी की लीला सुनिये तत्व निचोर।

 

पहुँचि गईं जँह श्याम सुहावन मन भावन चित जोर।

प्रेम बिबश कर उठैं नहीं दोउ लागी चरनन डोर।

पलक परैं नहिं नयन नीर झरि तन ह्वै गो सर बोर।

फेरि स्वरूप सँभारि लीन सिय पहिरायो दृग जोर।

कृष्ण दास कहैं सुमन बृष्टि नभ ते सुर करते शोर।२०।

 

बजावैं दुन्दुभि बाजा भाय। कहैं देवन से बिष्णु सुनाय॥

काम अब तुम सब का हो भाय। कृपा करि आये सब सुखदाय॥

जानते शिव ब्रह्मा कछु भाय। कहैं हम जौन बचन सुखदाय॥

सुफ़ल कीन्ही मुनि यज्ञ को भाय। अहिल्या तरी चरन रज पाय॥

होय अब ब्याह सिया संग भाय। जाँय श्री अवध दीन सुखदाय।१०।

 

रहैं तेरह बरसै रघुराय। अवधपुर बासी अति सुख पाय॥

केकयी नृप से कहैं सुनाय। हमै कछु माँगे दीजै राय॥

कहैं दशरथ जो मन में भाय। माँगिये देहैं हम हर्षाय॥

कहैं केकयी सुनो सुखदाय। त्रिबाचा कीजै कहौं सुनाय॥

करैं त्रिबाचा दशरथ राय। खुशी हो कहैं केकयी माय।२०।

 

राम को पठय देहु बन राय। भरथ को राज देहु हर्षाय॥

सुनत ही राजा तब घबराय। गिरैं धरनी पर होश न भाय॥

खबरि यह सब रानिन ह्वै जाय। पुरी भर में फिर जावै छाय॥

सुनैं श्री राम खबरि यह भाय। धरैं शिर अज्ञा मन हर्षाय॥

चलैं संग सीता लछिमन भाय। तनिक नहिं प्रेम शोक उमगाय।३०॥

 

चरन मातन के पकरैं धाय। फेरि नृप के ढिग पहुँचैं जाय॥

करैं परनाम चित्त हर्षाय। निरखि राजा मन दुख अधिकाय॥

मांगि के बिदा चलैं जब भाय। नृपति के मुख से बोलि न जाय॥

दृगन के ओट होंय जब भाय। सिंहासन से राजा गिरि जाय॥

होय तँह भीड़ बड़ी दुखदाय। कहै को शोक की बातैं भाय।४०।

चलैं पंखा नृप पर सुखदाय। अर्क शीतल गुलाब छिड़काय॥

होश हो दो घंटे में भाय। दुःख से घायल हों नृप राय॥

राम कहि राम राम कहि भाय। देंय सुर पुर को प्राण पठाय॥

नगर का हाल कहैं क्या भाय। जाय सब के तन ज़रदी छाय॥

प्राण तो राम ले गये भाय। कहैं सब पुर नर नारी हाय।५०।

 

भरथ जी क्रिया करैं तब भाय। जहाँ बिल्व औ हर शम्भु सुखदाय॥

राम का हाल सुनो चित लाय। अवध का हाल कहत दुख आय॥

पहुँचिगे गंगा तट पर जाय। मिले केवट चरनन लपटाय॥

जारी........