॥ प्रश्नोत्तर ॥
फिर खफीफ शाह का पद सुनाया गया।
पद:-
सतगुरू से सुमिरन विधि जानो नाम क जारी तार रहे।
दीन बने तो तप धन पावै, वरना यह दुश्वार रहे॥
भीतर से दया नौकर पर रहे।
परस्वारथ बिन कह खफीफ, तन दोनों दिसि बेकार रहे॥
प्रश्न १६. महाराज मनुष्य एक यन्त्र है। उसको आप चलाने वाले हैं।
उत्तर जिस रीति से ऋषि मुनि चले हैं, उसी रीति से चलना चाहिये। जितने सन्त भये हैं सबने अपने को नीचा मान करके ऊँचा दरजा पाया है। दीनता, शान्ति से इन्द्रिय दमन किया है। भजन का पुराना तरीका यही है। इसी तरह चलना चाहिये।
कबीर जी ने कहा है:-
मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर।
तेरा तुझको सौंपते, क्या लागत है मोर॥
प्रश्न १७. गुरूकृपा से अन्तर के फाटक खुल जाते हैं पर साधक स्वयं मेहनत करै और प्राप्त करै। कुछ लोगों का मत है कि मार्गर् बता देने के बाद गुरू का कार्य समाप्त हो जाता है, आप बतावें क्या सच है?
उत्तर गुरू वाक्य अनमोल रत्न हैं। उसे विश्वास कर के पकड़ ले। अपना भाव विशाल होना चाहिए। बाबा रामसरन दास जी ने हमको लिखाया है:-
सत गुरू वचन भजन से बढ़िकै।
सुर मुनि सब हमसे यह भाख्यो हम न कहैं कुछ गढ़ि के।
ध्यान, धुनी, परकाश, दशा लय,
श्याम प्रिया मिलैं कढ़ि के॥
जियतै ठौर ठिकान बनाओ, होय न सुनि लिखि पढ़ि के।
रामसरन कहैं अन्त त्यागि, तन चलो सिंहासन चढ़ि के।
प्रश्न १८. सपन की मीमंासा (व्याख्या) करिये।
उत्तर खराब स्वप्न पेट की खराबी से होते हैं। बहुत प्रेत बाधा से, बहुत वायु बिगड़ जाने से, बहुत चिन्ता के कारण। अच्छे स्वप्न से अच्छी गती होती है।
नानक जी ने कहा है:-
जागृत स्वप्न सुषुप्ती तुरिया।
आतम भूपति की यह पुरिया॥
एक स्वप्न जागते में होता है। एक स्वप्न सोते में होता है
और एक ध्यान में। यह आत्मा का खेल है।
अन्धे शाह जी का पद:-
करमा-कुबिजा गणिका सेवरी प्रेम प्रभु से कीना।
अन्त त्यागि तन निजपुर पहुँची सिंहासन आसीना॥
सीधी सादी चारौं माई, तीरथ व्रत नहिं कीन्हा।
अन्धे कहैं प्रीति विश्वास से, हरि को बसि करि लीन्हा।४।
शुभ कारज करि लेव, जियत में, कर्म की भूमि बनी यहीं।
चाली कहैं पदारथ चारिउ, इसी रीति से मिलत सही॥
सारा खेल मन का है।
प्रश्न १९. मन कैसे लगे?
उत्तर १) मान अपमान न लगै।
२) अच्छा अच्छा भोजन छोड़कर, रूखा भोजन करो। दोनों समय कुछ भूखे रहो। सबके दुख सुख में सरीक रहो। बेइमान का अन्न न खाओ। बेखता कसूर कोई गाली दे मारे तुम रंज न करो चुप रहो। शुद्ध कमाई करो। भजन खुल जावेगा।
प्रश्न २०. भजन किस तरफ किस समय करैं?
उत्तर ३ बजे रात्रि से ११ बजे दिन तक पूरब मुँह, ११ से २ बजे तक उत्तर मुख, बाद में १० बजे रात्रि तक पच्छिम मुँह। और रेल मे बैठे हो तो जिधर रेल जाती हो उस तरफ मुँह करके बैठकर जप करैं।
भगवान सर्व शक्तिमान हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं। कर्मानुसार भगवान सबको देते हैं। अपनी विचार कुछ नहीं चलती। जै दिन का जहाँ का अन्न जल होता है, भगवान रखते हैं। समय स्वांसा शरीर भगवान का है। जो अपना मानते हैं वह भगवान को भूले हैं ।
प्रश्न २१. '(प्रसंग) पारिजात' विधि भक्त पूछते हैं।
उत्तर बहुत शुद्ध जीव होगा वही कर सकता है, सब नहीं कर सकते। व्यर्थ पूछते हैं।
प्रश्न २२. महापुरुष के संग से क्या लाभ?
उत्तर प्रारब्ध (पूर्व जन्मों के कर्म फल) भोग भोगने की शक्ति प्राप्त हो सकती है।
प्रश्न २३. मन शुद्ध कैसे होता है?
उत्तर मन शुद्ध जीभ को रोके होता है। जितना सादा हलका भोजन होई, उतना ही मन हलका रहेगा - भजन होगा। बिना इन्द्रिय दमन कुछ होगा नहीं। प्रेम भाव विशाल हो जाय, तब कोई बात नहीं।
जारी........