॥ माटी खान लीला ॥
जारी........
चौपाई:-
हलधर श्याम की जोड़ी प्यारी। सुर मुनि देखि के होत सुखारी॥
ग्वाल बाल वृज के नर नारी। सब के तन मन धन बनवारी॥
पक्षी पशु जल चर कृमि जानो। सब बस भये श्याम के मानो।
हलधर गौर वर्ण हरि कारे। उपमा जिनकी अमित अपारे॥
ग्वालन संघ चरावैं गैयां। सब को कहैं प्रेम से भैया॥
माखन रोटी सब की खावैं। तब फिर अपनी सबै खवावैं॥
साँझ होत गौवैं लै आवैं। यमुना जी में नीर पिआवैं॥
तब बाड़न में पहनैं लाई। गौवैं सिखी सबन सुखदाई॥
अपने अपने खूँटन जाई। ठाढ़ी होंय शान्ति से भाई॥
तब हरि बहुत रूप धरि लेवैं। बांधें छिन में गृह चलि देवैं।२४०।
भोजन भांति भांति के माई। गृह में राखैं मातु बनाई॥
हाथ पाँव धोवैं दोउ भाई। पिता के संघ में पावैं जाई॥
करि आचमन शयन फिर करहीं। नित लीला नाना बिधि करहीं।
यशुमति कह्यो जाव बलरामा। लै पीनस बृषभान के धामा॥
बिदा कराय लै आओ प्रिय को। आनँद होवै लखि कै हिय को॥
पुरवासिन को संघ लै जाओ। गान बजान करत गृह लाओ॥
दोहा:-
गृह गृह में धावन गये सबै भये तैयार।
चले संग बलिराम के, पीनस लिहे कहार॥
चौपाई:-
नाना बिधि के बाजा बाजैं। नाचैं नर नारी छबि छाजैं॥
दोहा:-
पहुँचे द्वारे जाय सब, लखि वृषभान अनन्द।
कृष्ण राधिका उर बसे, जो आनन्द के कन्द।२४५।
सोरठा:-
धाय मिले बलिराम, कर पकरयो वृषभान तब॥
सुन्दर शोभा धाम, गृह लैगे बृषभान तब॥
चौपाई:-
माता लख्यौ प्रिया की जैसे। धाय के उर में लायो तैसे॥
फेरि गोद में लियो बिठाई। जिमि निर्धन पारस मणि पाई॥
तब बलिराम बचन मृदु गाये। प्रिया को बिदा करावन आये॥
मातु पिता मोहिं अज्ञा दीन्हा। तब हम यहां पयाना कीन्हा॥
सुनि बलराम की कोमल बानी। राधे कि मातु बहुत हर्षानी॥
धन पट भूषन औ पकवाना। बिबिध भांति को करै बखाना।२४९।
धीमर बहु लीन्हेउ बोलवाई। बहिंगन में सब दीन भराई॥
दोहा:-
जो न्योताहरी नन्द के, सो बृषभान के जान।
सब तन मन ते अति खुशी, शेष न सकत बखान॥
चौपाई:-
सब को धन पट भूषन देवैं। सब कोइ कहैं नहीं हम लेवैं॥
गैयां बछवा बछिया घर घर। धन पट भूषन ते गो मन भर।२५१।
दोहा:-
ठौर घरन में कम रह्यो गुजर भरे को जान।
या से हम सब लेंय नहीं, मानो बचन प्रमान॥
चौपाई:-
नन्द यशोमति के गृह जाई। लूटेन पट धन भूषन गाई॥
दोहा:-
बचन सुने वृषभान यह, तन मन भयो सनाथ।
मै पत्नी के धुनि कियो। जय जय जय यदुनाथ॥
चौपाई:-
राधे को पीनस बैठाई। कीन बिदा तन मन हर्षाई॥
चली जक्त माता गुण खानी। श्याम के रंग में हर दम सानी॥
आगे पीछे सब पुरवासी। बीच में पीनस सोहत खासी॥
गान बजान करत चलि आये। नन्द के द्वारे धूम मचाये।२५५।
द्वारे पर पीनस उतराई। गे बलराम भवन को धाई॥
माता से सब हाल बताई। फिर द्वारे पर पहुँच्यो आई।२५३।
जारी........