॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३३ ॥ (विस्तृत)
४३६. व्यास जी ने कहा है:-
पर उपकार के समान दूसरा धर्म नहीं है। दो दल हैं:-
परमारथ - अपने इष्ट को प्राप्ती कर लेना, (और) परस्वारथ। दोनों में अपने को मिटा देना परता है तब सब देवी देवता खुश होते हैं।
४३७. तुम जानो भगवान जानें, तब काम बनेगा। ढोंग से नहीं काम बनेगा। बहुत प्रेम से जपे, रात का काम है।
४३८. भोजन भी शुद्ध हो तब बुद्धि ठीक होती है। जैसा भोजन होगा वैसा सुरस बनेगा, वैसा खून बनेगा धातु बनेगी। बिना शुद्ध भोजन के जप दान क्या करेगा?
४३९. जप पाठ पूजन हवन कीर्तन में मन लग जाने से आकाशवाणी होती है। काम हो गया, दर्शन होते हैं। यह खेल नहीं है। मन न लगने से सब गैर हाजिरी में दर्ज हो जाता है। जब तुम बीमार हो तो तुम्हारा नेम हाजिरी में लिख जाता है। जब ठीक हो, नेम न करौ तो गैर हाजिरी में लिख जाता है।
४४०. गद्दा बिछाने से शरीर सुकुमार हो जावेगा। अब उमर ८१ बर्ष ८ माह की हो गई ऐसा करना ठीक नहीं।
४४१. लड़का, लड़किन के ब्याह में ५ बातें मिलान कर ले:
१) आपस का मेल
२) आयु
३) सन्तान योग
४) गुण
५) वरन (वर्ण)
यह पांचों बातंे मिलें तब शादी करै। जल्दबाजी में (शादी करने से यदि) लड़की को तकलीफ हो तो माता पिता, बीच वाले को नरक होता है।
४४२. भोरहरे (भोर होने के समय) का गर्भ चोर होता है, शाम का राक्षस, दिन का पशू, आधी रात का सांति (शांत), २ बजे रात्रि का बड़ा जबर साधू होता है। ५ साल की सन्तान माता के पाप से मरती है। पांच के ऊपर १४ तक की पिता के पाप से, बाकी उसके ऊपर अपने पाप से मरती है। सब ऋषि लिख गये हैं। स्नान और गर्भ में माता चोर बदमास देख लेने से, बालक पर बदमास का असर आ जाता है।
४४३. पहले (पुराने समय में) माता शुद्ध भोजन (करती थी), शास्त्रानुकूल चलती थी तब संतान उत्तम होती थी। पहले माता कन्या को (तथा) सास बहू को बता देती थी। यह खेती घर की है।
४४४. जब जीव गर्भ में आता है, तब माता नहा कर जिसे देख लेती है वही गुन औगुन जीव में आ जाते हैं। हर एक जोनि में मन जीव के साथ वही रहता है। बिना देवता के आराधना के तन-मन में छिपे चोर शांत नहीं हो सकते, सब लूट लेते हैं।
४४५. औलाद गन्दी होने पर नरक होता है बाप को।