॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३६ ॥ (विस्तृत)
४७५. नेत्र ज्योति बढ़ने के लिये:
प्रात: तालू दो ऊँगली से मले। भोजन बाद हाथ रगर (रगड़) कर दोनों जब गरम हो जायें तो आँखें सेंक ले।
४७६. भीगे १ मुट्ठी चने में बहुत गुण हैं।
४७७. आँख के लिये खटाई मिर्चा बिलकुल न खाओ। चना मिला गेहँू की रोटी खाओ। १ मूठी चना खाकर १ पाव पानी पी लो। भोजन के बाद ३ मासे (माशे) सौंफ चबाकर पानी पी लिया करो। रात को सोते समय, बड़ी सौंफ का चूरन, ६ मासे शकर, १ तोला फांककर गाय का दूध ४० दिन।
४७८. सादा भोजन करो। खटाई मिर्ची, आग की लपट, धुंआ, रोना क्रोध, फिकर, पखाना पेशाब रोकना, रात जागना से लाभ न होगा।
४७९. देर से पचने वाली चीज न खाओ। शाम को ३ मासे त्रिरफला, ६ मासे शहद, १ तोला गाय का घी सेवन करे। सवेरे त्रिफला के पानी से आँख धोवे। तलवों को साफ रक्खे।
४८०. खान पान शुद्ध न होगा, दवा क्या काम करेगी?
४८१. पद: जब तक मन स्थिर नहीं, तब तक कारज बन्द।
जब मन काबू हो गया, कारज होय तुरन्त॥