॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ४ ॥ (विस्तृत)
६०. कबीर जी ने कहा है:-
हरि से लगे रहो मेरे भाई, बिगड़ी बनत-बनत बन जाई।
६१. भगवान भक्तन पर प्रेम और पापी पर दया न करें तो इनका उद्धार ही न हो।
६२. मन शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है। अच्छी जगह ले जाय तो जीव की अच्छी गती हो। खराब जगह ले जाय तो जीव की खराब गती हो।
६३. सारा खेल मन का है। (संसार से) बंध मोक्ष का कारण मन है। इसकी बदमासी इससे जबरदस्ती लड़कर जीतो, नहीं तो बार-बार हर योनि में पैदा होना मरना न छूटेगा। इसके संगी भूख-प्यास जुबान इच्छा हैं, यह बड़े नालायक चटोरे हैं। यह अच्छी चीज़ बहुत खाते हैं। यह अच्छी वस्तु के लिये पेट में जगह चुराये हैं, सूखी के लिये पेट में जगह नहीं है। यह इन सबकी बेइमानी सुनकर समझकर सतर्क रहो।
६४. मीठा खाने से मन लबरा (लालची) हो जाता है। यह सब खाने से भजन न होगा।
६५. जो संसारी बातों में पड़ा है, वह कुछ नहीं कर सकता। बिना मान अपमान जलाये, भगवान और अन्य देवी देवता मदद नहीं करते। जो केवल ईश्वर के सहारे है वही पार होता है। दुनियाँ के सहारे रहने वाला दुनियां में बार-बार पैदा होता व मरता है।
६६. जिसे भगवान की तरफ जाना है वह सब बातें छोड़कर प्राण का लोभ त्याग दे, वही भगवान का प्यारा दुलारा है, न किसी से बैर न किसी से मेल।
६७. अपना भाव ठीक हो तो सब देवी देवता पास ही हैं।
६८. दान लड़किन की सादी (शादी) में, गरीबों की मदद मंे देना चाहिए। भगवान जानें, जो दे वह जाने, तब फल होता है। गुप्त दान, पुण्य भगवान के यहाँ लिख जाता है। कहने से पुण्य क्षीण हो जाता है। कितने भूखे मरते हैं, झोपड़ी टूटी है, कपड़े फटे हैं, पेट कभी भरता नहीं है - ऐसे (लोगों को) को देना चाहिए।
पद: पुण्य करौ सो ना कहौ, पाप करो परकास।
कहिते ते दोउ घटत हैं, बरनत तुलसीदास॥
६९. दाहिने हाथ से जो दिया जाय उसे बायाँ हाथ भी न जाने।
७०. भजन की हज़ारों शाखायें हैं, केवल माला से कुछ नहीं होता। ईमान ठीक हो, जीवों पर दया, तब कुछ होता है। पर उपकार से भी पट खुल जाते हैं। बेखता बेकसूर कोई गाली दे तुम्हें रंज न हो। तारीफ करे तुम खुश न हो। माया दोनों तरफ से लूट लेती है।
७१. कोई चाहे कुछ भी कहे मन में रंज न हो, बस भजन हो गया।
७२. किसी को कटु वचन न कहो।
७३. संसारी बातों में न जाओ।
७४. परोपकार से जीव चौथे बैकुण्ठ को जाता है। जिसमें परोपकार और किसी देवी देवता से प्रेम नहीं है उसकी गती नहीं होती है, यह आँखों देखी बात है।