॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(३)
गीता गीता कहै जौन कोइ त्यागी होवै जियत तरै।१।
मानस मानस कहै जौन कोइ मन के सारे पाप जरैं।२।
एकै अर्थ न मानै जो कोइ बैठ एकान्त में ध्यान धरै।३।
अन्धे शाह कहैं तब भक्तों शान्त दीन बन आप मरै।४।
पद:-
गीता मानस पढ़ै सुनै औ गुनै जौन हो सुख भारी।
जौ जो शब्द कढ़ै निज मुख से बिहँसि बिहँसि देवैं तारी।
अर्थ बतावैं भाव दिखावैं बोलैं तुम्हरी बलिहारी।
प्रकटैं दोउ माता जग विख्याता हर दम निरखौ छबि न्यारी।
चट हिये लगावैं थपक सुलावैं चूमैं मुख को चुचकारी।५।
बिधि लेख को टारैं सदा संभारैं ऐसी मुद मंगलकारी।
मन को जो मारैं वही निहारैं जीत लेंय भव की पारी।
अंधे की बिनती दोउ मां सुनतीं नित प्रति दें सिर कर धारी।८।
दोहा:-
मन का झोंझ भरै नहीं, लादे पाप का बोझ।
अंधे कहँ सुमिरन बिना, होये नहीं यह सोझ॥
पद:-
घुसो तो सूरति लगा के अन्दर मुहीत दरिया हलक रही है।
करम जला कर बढ़ो फिर आगे, बिजुल छटा क्या दमक रही है।
मणिन की पृथ्वी वहाँ पर अद्भुत, चमक चमा चम चमक रही है।
गुलों से गुलशन तमाम गुच्छे अजब तरह से महक रही है।
वहां पर बैठे अनन्त साधू प्रकाश उनकी लपक रही है।
अपार शोभा सिय हरि की वहँ पर अन्धे कहैं मानो टपक रही है।६।
पद:-
ग़रीब पर वर हमारे स्वामी, नमक हरामी कभी न करना।१।
बताते अन्धे छुटैंगे फन्दे यही है भक्तों जियत क तरना।२।
मिलैगा तक़मा उसी में चशमा बहार देखो यही है मरना।३।
शरन में पक्के रहो न कच्चे, सुरति शबद पर सम्हार धरना।४।
पद:-
वैराग भया तब राग कहाँ सुख सागर में बह जाय सना।१।
सतगुरु की वाक्य क ख्याल रहा मन चोरन को कर दीन फ़ना।२।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि मिली सन्मुख सिय राम का रूप तना।३।
कह अन्धेशाह भा जियत सरन फिर गर्भ बास में नाहिं छना।४।