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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

षट चक्कर तब चलै हरसै सातौ कमल फुलाया।

अद्भुद महक खरन से ज़ारी रोम रोम पुलकाया।१०।

 

कंठ रुधि जाय बोलन फरै नैननौ झरि लाया।

हालै शीश बदन थर्रावै पलक भांजि नहि पाया।

लै परकास नाम धुनि ज़ारी हरसै से भन्नाया।

सिया राम प्रिय श्याम रमा सनमुख में छवि छाया।

तुरिपा तीत दशा पह जानो सहज समाधि कहाया।

अंधे कहै .. साकेत चढ़ि सिंहासन धाया।१६।

 

पद:-

देखत सुनत है आत्मा कोइ कहै आंखी कान।

अंधे कह सतगुरु बिना छूटत नहिं अज्ञान॥

आपै बने हैं आत्मा आपै सब में जान।

अंधे कह सतगुरु बचन यह वेदान्त क ज्ञान॥

जहां से वेद का अन्त है ताहि कहैं वेदान्त।

अंधे कह सतगुरु कह्यो यही सही सिद्धान्त॥

 

समुझाये समुझत नहीं ऐसे खोटे कर्म।

माया के परपंच में जकड़े सब बे मर्म॥

या से अपनी ही धुनै सदा रहत है गर्म।

अंधे कह सतगुरु बिना, मिलै न नाम का मर्म॥

हरि सुमिरै मन बच करम आपै होवै नर्म।

अँधे कह डंडा गहै, दोनों दाया धर्म।६।

 

दोहा:-

तोड़ा थैली बहुत हैं, तप धन की तब पास।

अंधे कहैं सतगुरु बिना, मिलत न फिरौ उदास।१।

जैसे बीजा बन्द है वा में पेड़ कपास।

अंधे कह बोये बिना जामें कैसे खास।२।

वैसे बिन कर्तव्य के हब्य मिले नहिं खान।

अंधे कह सतगुरु कह्यो, सब से बड़ी प्रमान।३।

 

चौपाई:-

देवासुर संग्राम जो ठाना। महाभार्थ तन में लखि जाना।

सोरह सहस दैत्य बलवाना। घेरे हैं सुर मुनि को थाना।

सब माया करने में दाना। मरैं नाम का फेरैं बाना।

जिन सतगुरु करि के जप ठाना। ते बनि बैठि गये टमटाना।

शान्ति दीनता में जो साना। अंधे कहैं सदा हर्षाना।

ध्यान प्रकास धुनी लै जाना। सन्मुख राम सिया छबि छाना।६।

 

पद:-

लीजै राम नाम का पास।१।

सतगुरु से जप भेद जान लो छोड़ो जग की आस।२।

ध्यान धुनी परकास दसा लै कर्म दोउ नास।३।

अनहद सुनौ अमी रस चाखौ बरसत बारह मास।४।

नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमलन होय बिकास।५।

 

सुर मुनि आय आय नित भेटैं बैठें चहुँ दिसि गांस।

जै जै कार करैं तारी कहैं भयो हरि दास।

षट झाँकी की शोभा बाँकी हर दम सन्मुख भास।

रवि ससि तारे वहां नहीं हैं ना वहँ बारि बतास।

अंधे कहैं देस वह ऐसा अगणित भानु प्रकास।१०।

 

पद:-

ततेरे बाजी को छोड़ करके ईमान अपना मुसल्लम करिये।

तभी तो मुरशिद की होगी किरपा बतावैं जप तो उसी में भरिये।

न आना जाना मिलै ठिकाना धुनि नूर लै रूप सन्मुख में ठरिये।

अंधे कहैं कछु रहा न बाकी इसी तरह चलि जियति में तरिये।

 

पद:-

सब में राम नाम परधान।

सतगुरु करि जप भेद जानि के बैठि लगाओ ध्यान।

जारी........