॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
पद:-
देखो लंगर माई दधि मोरी खाय डारी।
चोली मसकाय डारी चुनरी को फारि डारी।
मटकी को फोरि डारी बहियाँ मरोर डारी।
बोलै तो कहत दारी चुप चुप चुप सारी।
सुर मुनि जै जै कारी बोलैं कहैं बलिहारी।५।
तन मन दीन्हें वारी ब्रज की है लीला न्यारी।
प्रेम में पगी हैं प्यारी हरि की बड़ी दुलारी।
सतगुरु किरपा भारी सकते सोई निहारी।
ध्यान धुनि उजियारी लै में सुधि बुधि बिसारी।
सन्मुख बनवारी सखा सखी राधा प्यारी।१०।
ऊपर ते कहैं हारी भीतर ते एक तारी।
अंधे कहैं सुकुमारी जीतैं सबै दोनो पारी।१२।
दोहा:-
सारे गृह तब शान्ति हों जब पावै हरि नाम।
अंधे कह छूटै दुई सब में सीता राम।१।
सुर मुनि सब नित प्रति कहत अनुचित उचित जो बात।
अंधे कह जो हम कहा बुरा न मानै भ्रात।२।
पद:-
तन गुदरी भीजत गरुवाई।
दिन दिन आयू छीजत जावै जानत हौं न उपाई।
जगत मिठाई में करुवाई, मनुवाँ रह्यो बकाई।
अन्त समै चलि नर्क में परिहौ हर दम परै पिटाई।
हाय हाय हर दम तहँ बोलो को इन सकत छुटाई।५।
या से चेति करो अब सतगुरु देवैं राह बताई।६।
करि हरि भजन मगन ह्वै जावो बिधि कर लेख मिटाई।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाई।
अमृत पियो सुनो घट बाजा सुर मुनि लें उर लाई।
नागिनि जगै चक्र षट नाचैं सातों कमल फुलाई।१०।
उड़ै तरंग रोम सब पुलकैं गद गद कंठ बोलि नहिं जाई।
अंधे कहैं चलो साकेतै बनि बैठो अस्थाई।१२।
दोहा:-
यह पद पढ़ि सुनि गुनि भगत लेवैं उर में धार।
अंधे कह हरि भजन बिन होत नहीं निस्तार॥
पद:-
राम नाम का मिलिगा टाल। निर्भय रहौ ठोंकि कै ताल॥
छूटि गयो जग का जंजाल। आनन्द हर दम करै उछाल॥
जियतै में जो करै कमाल। सोई होगा माला माल॥
है अमोल यह नर की खाल। चूकै जावै काल के गाल॥
सतगुरु शरनि से मिटै बवाल। शान्ति दीन बनि धैर्य संभाल।१०।
प्रेम लपटि कै करै निहाल। मुक्ति भक्ति का मिटा सवाल॥
अंधे कहैं करो नित ख्याल। हर दम सन्मुख दीन दयाल॥
नैन जीभ कर सकैं न हाल। राम नाम अनमोल है लाल।१६।
पद:-
शुभ कारज करना फलै नहीं, जब बुरी वासना मन में हैं।
अंधे कहैं भक्तों चेत करो आनन्द बड़ी तप धन में है।
सतगुरु बिन भटकत इधर उधर अनमोल पदारथ तन में है।
धुनि नाम प्रकास समाधि हो षट रूप लखौ कन कन में हैं।
दोहा:-
सतगुरु दीन्हों सब्द को सूरति दीन्ह लगाय।
सालि रह्यो हर दम नशा अंधे कह सुखदाय।१।
संगति दुष्टन की परै सहै सो सूर कहाय।
जारी........