॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
अन्धे कहैं वही है साधू जियति मिला सुख साला।११।
अन्त त्यागि तन निज पुर पहुँचा मातु पिता का लाला।१२।
पद:-
बताओ भक्तौं कहाँ को चलिहौ भरी है तन मन जगत की आशा।
फिकिर नहीं तुमको अपने घर की ये तन को मानो जल का बताशा।
गरभ में कैसी करार कीन्ही यहाँ पै बैठे बने निराशा।
उठो अब चट पट सतगुरु से मिल लो बता दें मारग मिलै सुपासा।
चलावो चरखा नचे तब तेकुवा बनावो तागा धरी कपासा।५।
धुनि रेफ़ बिन्दु कि जर्रा जर्रा से होत रं रं लखौ तमासा।
सियराम सन्मुख प्रकास चहुँ दिसि समाधि दोनों करम का नाशा।
तन त्यागि करके चलो जहां से अंधे कहैं लो निजधाम बासा।८।
दोहा:-
मन खजूर के तरेगा, चाहत लेंय जुड़ाय।
कहाँ पेड़ कहँ छाँह है अंधे कह पछिताय।१।
गोता मारो पास में भरा अगम दरियाव।
अंधे कह जियतै तरो मिलै न ऐसा दाँव।२।
कुकरम का फल है बुरा सुकरम का है नीक।
अंधे कह हरि भजन बिन मिटै न कर्म की लीक।३।
दोहा:-
य़ह शरीर बेकार है जो हरि नाम न पाव।
अंधे कह सतगुरु करो बैठि एकान्त में ध्याव॥
सनै सनै साधन करो परि जावै तब दाव।
अंधे कहैं मन दोस्त ह्वै संग रहै हरसाव॥
बैठे ठाढ़े लेटि कै चलते नाम पै ध्यान।
अंधे कह तब आइकै लपटि मिलैं भगवान॥
जल भोजन हलका करो शांति दीन बनि जाव।
अंधे कह यह भजन बिधि और न ऐस उपाव॥
ब्रह्म महूरत दो बजै लागत निसि में जान।
अंधे कह सतगुरु सुमिरि सुनै नाम की तान।५।
इसी तान से लोक जुग सुर मुनि आवैं पास।
अंधे कह जै जै करैं भयो दुःख सब नास॥
या बिधि जग में बसर करि अन्त चलो निज धाम।
अंधे कह तन भा सुफल मिलिगा अचल मुकाम।७।
पद:-
भजन करै संग लगी मजाक। समुझि जाव हैं बड़े कजाक।१।
इस दिल्लगी से होय सुजाक। तब कैसे होंगे बेबाक।२।
मन को मारि करो जब खाक। भगै बासना सकै न ताक।३।
जे न भजैं ते नर्क में पाक। अंधे कहैं कटी कुल नाक।४।
पद:-
सब कछु नाम प्रताप में पायो।१।
सुर मुनि सक्ती जेहि बिधि ध्यावत सो सतगुरु ने बतायो।२।
अंधे कहैं टूट भ्रम फाटक परमानन्द है छायो।३।
जे मदान्ध मद में है माते तिनहिं काल धरि खायो।४।
पद:-
खेलो राम नाम का सट्टा।१।
सतगुरु से सब ठीक सीख कर जियतै लै लो पट्टा।२।
तब फिर चोर ठगन नहिं पावैं लेहु जमा करि चट्टा।३।
अंधे कहैं चूकि जे जावै दोनो दिसि भे खट्टा।४।
पद:-
हरि सुमिरन में जाय सटि मन को संग मिलोय।
अंधे कह सच्चा वही सत्य प्राप्त कियो सोय।
नाना नारिन लिहे मन लादे सिर पर भार।
बृच्छ कहौ कैसे बढ़ै कटी परीं सब डार।
कहत जिन्हैं हैं बासना सुर मुनि शास्त्र पुकार।५।
जारी........