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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

अंधे शाह कहैं जियतै में छूटि गयो सब ठैंठो।३।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन चलि साकेत में बैठो।४।

 

पद:-

दीनता शान्ति बिन पकड़े कभी कोई नाम पाया है।

कहैं अंधे सुनो भक्तों मुझे सुर मुनि बताया है।

ध्यान धुनि नूर लै होवै जहां सुधि बुधि भुलाया है।

हर समै राम सीता की छटा सन्मुख में छाया है।

पिया अमृत सुना अनहद देव मुनि उर में लाया है।५।

 

जगा नागिन घुमा चक्कर कमल सातौं खिलाया है।

महक से मस्त किमि बोलैं बिहंसि के सर हिलाया है।

छोड़ि तन चढ़ि सिंहासन पर वतन अपने को धाया है।८।

दोहा:-

सतगुरु चरन की रज धरै लेवै दृगि नित आंजि।

अंधे शाह कहैं वही पाप ताप दें गांजि।

तन मन होवै एक रस ऐसा जावै मांजि।

जैसे बरतन साफ़ हो मलि कै देखो कांजि।

प्रेम भाव होवै अटल सतगुरु में जेहि केरि।५।

 

अंधे कह सो पाइहै परै न कबहूं फेर।

जब तक ये बातैं नहीं तब तक लागै देर।

अंधे कह तब कौन बिधि सकौं नाम धन गेर।८।

 

पद:-

अन्धे अन्धे अन्धे हम हैं सदा के अन्धे अन्धे।१।

नाम जपन की बिधि को जाना बैठे सुख के कन्धे।२।

निर्भय औ निर्बेर गयन ह्वै छूटे सारे धन्धे।३।

जे नहिं सुमिरन करैं प्रेम से ते सब जग में बन्धे।४।

 

चौपाई:-

कसनी परै सहै नहिं हारै। दया धरम ते मन नहिं टारै॥

निरछल रहै सो निर्मल होवै। अन्धे कहैं सदा सुख सोवै॥

 

चौपाई:-

गैर हाजिरी का वह खाता। चलि देख्यो यह बने बिधाता।

तोता मैना तूती बनना। पढ़ि सुनि लिखि कंठाग्र क करना।

इधर उधर चलि ताना तनना। निज मन मति पर ध्यान न धरना।

वाक्य ज्ञान से होय न तरना। वाकी आडम्बर में गणना।

सतगुरु के चरनन में परना।शान्त दीन बनि धीरज धरना।५।

 

निन्दा अस्तुति में मति परना। वा से कबहुँ न होय उबरना।

सुर मुनि संतन सब युग वरना। जियतै तरना मरना शरना।

अंधे कहैं सबन हित वरना। बालक जानि छिमा सब करना।८।

 

दोहा:-

कहैं अन्धे सुनो ऐसी, छिमा बिन साधुता कैसी।

कहै जैसी सुनो तैसी, मिलैगी राह तब वैसी।

 

पद:-

चरनोदक परसाद का लेना भाव बिना कछु होई नहीं।

सुर मुनि की यह बानी भक्तौं अंधा बीच में पोई नहीं।

मेहतरि सब को जूठा पावै पाप सकत निज धोई नहीं।

सच्चा बनै रहै नहिं कच्चा सो जग आय क रोई नहीं।

पद:-

सुनिये रमा विष्णु किरपाल।

इस तन भीतर दुष्ट पुष्ट अति रहत पांच चण्डाल।

नाना विघ्न भजन में डारैं छिन छिन करत बवाल।

मन सब का ब्यवहारी बनिगा हमसे बांधि मलाल।

आप तो जग पितु मातु कहावत मैं आपै को बाल।

अंधे कहैं विनय यह मेरी मेटौ दुख की जाल।६।

 

पद:-

सुनिये श्यामा श्याम दयाल।

इस तन भीतर रहत निरंतर पक्के पांच दलाल।

भजन करन जब बैठें धावैं देवैं निज निज ताल।

जारी........