॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
जल भोजन मल मूत्र क देवैं कहैं खाव पियो शक्कर।५।
अंधे कहैं होय जब मुरछा पड़े रहौ जिमि लक्कर।
आँखी रांजी ठेठर लटकै देखि सकत नहिं टक्कर।
मन ही मन पछितावै फटकै भूलि गई सब अक्कर।८।
पद:-
मन क्यों आये संग में डाहन।
हमही तुम्हें दिवान बनायन अब दुष्टन के बाहन।
उनका संग छोड़ि अब दीजै चलिये नीकी राहन।
पाप कमाई तुम्हैं सुहाई हम पड़ै नर्क अथाहन।
गदहा खात खेत में देखत पीटत लोग ज्वलाहन।५।
यह मसला कबीर जी का है मानै नहिं ते पाहन।
नमक हलाल बनो हरि सुमिरो छूटै हम भव धाहन।
अंधे कहैं चुकावो बाकी तब मिटिहै उर दाहन।८।
दोहा:-
एक बचन से बहु बचन बहुसे होवै एक।
अंधे कह सुमिरन करो नाम पै मन को टेक॥
जग के ऐश अराम को मन से दीजै फेंक।
तन से सब बरतत रहो कर्म लिखा दो छेक॥
बार बार हमका कहैं मिलै न ऐसा बार।
अंधे कह सुमिरन करो जियति होहु भव पार॥
संजम से तन ठीक हो संजम से मन ठीक।
संजम से सुमिरन बनै बिन संजम हो फीक॥
जाके पास में कछु नहीं वह सुमिरै नित नाम।
अंधे कह हरि संजमी संजम का दे धाम।५।
ऐसा संजम और क्या जाके रच्छक राम।
भूखे प्यासे हरि भजै अंधे कह बसु जाम॥
मन को पागे नाम संग सतगुरु से बिधि जान।
अँधे कह हर दम मगन जो सब सुख की खान॥
नेम टेम विश्वास अटल करि जो हरि नाम में लागौगे।१।
सतगुरु से जप भेद जानि कै तन मन प्रेम में पागौगे।२।
वही भक्त इस जक्त में मानो चोरन को गहि टाँगौगे।३।
अंधे कहैं त्यागि तन निज पुर चढ़ि बिमान चट भागौगे।४।
पद:-
जानो राम नाम की टक्कर।१।
सतगुरु करि सुमिरन में लागो छूटै भव का चक्कर।२।
सुर मुनि शक्ती तुम्हैं खिलावैं सानि के घी औ शक्कर।३।
अंधे कहैं अन्त निजपुर हो लूटौ आनन्द छक्कर।४।
पद:-
मन नहिं मानत अपनी तानत।
है निर्लज्ज कपटी अति पापी अशुभ को शुभ ही जानत।
बड़ा प्रपंच पास है कीन्हे सुर मुनि वेद बखानत।
अंधे कहैं करे जे सतगुरु सुमिरन विधिवत ठानत।
वे या को बस में करि पावैं नाम रूप पहिचानत।
प्रेम से आगम सुगम ह्वै जावै घट में घुसि जे छानत।६।
पद:-
मन तुम काहे घूमत नाचत।
चोरन के संग दागी ह्वै के पाप करम में पाचत।
जीव अकेल सुकृत किमि जोरै दुख से लगड़ी खाँचत।
राम नाम सतगुरु से लेकर धुनि के रंग जो राँचत।
सोई तुम को बसि करि पावै ठीक हिसाब को जाँचत।
अंधे कहैं नूर लै पाय के रूप सामने टाँचत।६।
पद:- सुमिरन बिधि लै कर सतगुरु से अब सौदा अपना ठीक करो।१।
जारी........