॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
माता से कहैं कर मुख सब के पोंछौं हँसि दुलरावैं।५।
माता सब के कर मुख पोछैं खड़े करैं हरषावैं।
आप दौरि के मातु के लपटैं जूठे कर मुख नावैं।
कर निकारि मुख पर मुख रगरैं भीतर जीभ चलावैं।
कर मुख फिर सारी में पोछैं न धोवैं न धोवावैं।
माता हँसे लोटि जाँय महि पर हरि ऊपर चढ़ि जावैं।१०।
थूकैं मुख पर आँखी मूँदें हँसै औ पैर हिलावैं।
दौरि आय बलिराम पकरि लें माता तब उठि पावैं।
गुदगुदाय बलिराम को श्री हरि आँगन में कढ़िलावैं।
सखा सखी सब हरि को घेरैं बलि उठि के भगि जावैं।
सब के संग फेरि खुब खेलैं कूदैं सबन कुदावैं।१५।
नाना बिधि के खेल करैं जो बरनत नहीं सेरावैं।
दौरि जसुमति हरि को साधैं नन्द बैठि मुसकावैं।
कर उठाय के श्री हरि बोलैं हम गोदी में आवैं।
पीछे से दोउ आँखी मीचैं रहि रहि मूड़ हिलावैं।
नन्द आय तहँ ठाढ़े होवैं दौरि के पकरि बिठावैं।२०।
माता गोदी में लै लेवैं हरि मुख दूध में लावैं।
दूध पियैं औ उगिलैं महि पर थू थू करैं बकावैं।
माता की गोदी से सरकैं हँसैं औ मुँह मटकावैं।
कहैं मातु यह दूध है खट्टा अब हम कबहूँ न पावैं।
ब्रज जन बैठे लीला देखैं मुख से बोलि न पावैं।२५।
सुर मुनि नभ से जय जय बोलैं फूलन की झरि लावैं।
ऊपर ते आरती उतारें अस्तुति करि गुन गावैं।
नन्द जसोमति पुर के बासिनि सुर मुनि नित सिर नावैं।
धनि धनि कहैं दोऊ कर जोरैं नैनन नीर बहावैं।
प्रेम में हरि के हैं सब पागे जो नित देखन आवैं।३०।
इनके सुकृत से हम सब हरि के दरशन पाय जुड़ावैं।
अंधे कहैं भजो सतगुरु करि आप के सन्मुख छावैं।३२।
पद:-
लौ हर दम जिसकी लगी रहै मुरशिद का मुरीद सो प्यारा है।१।
नहिं मार सकै कोई उसको वह जियतै जग से न्यारा है।२।
जब चाहैं खेल समेट लेंय जब चाहैं उसे पसारा है।३।
अंधे कहैं ऐसे भक्त धन्य जिन सब करतल करि डारा है।४।
दोहा:-
मीठा जल में जब अधिक तब तो अधिक मिठाय।
अंधे कह ऐसे भजन करै ते जावै पाय।
पद:-
अलकैं कुल्लैं जुलुफ कहैं कोइ काक पच्छ सच मानो।१।
बोली देस देस की भक्तौं कहँ लगि कौन बखानो।२।
भँवर नागिनी कोइ मिसाल दे काले केशन जानो।३।
अंधे कहैं फेरि किमि बरने सुर मुनि सब यह ठानो।४।
पद:-
मोहन नाचत क्या रीति पर।
चार ताल का राग प्रिया जी गाय बतावैं नीति पर।
सखा सखी ब्रज जन सब देखें राधेश्याम की धीति पर।
मुरली में सब बोल बजावैं सुर मुनि मोहैं गीति पर।
समै स्वांस तन पाय के भक्तों मति चलना अनरीति पर।५।
खोटे करम सुःख किमि पैहौ चढ़ि बालू की भीति पर।
हर दम शुभ कामन में रहना ह्वै सवार मन मीत पर।
अंधे शाह कहैं हरि मिलते शान्ति दीनता प्रीति पर।८।
पद:-
जिन रोम रोम में पाप भरा। हरि सुमिरन करिके दीन जरा।२।
जियतै भव सागर तौन तरा। अंधे कहैं सतगुरु चरन परा।४।
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