॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
सुर मुनि दूर खड़े कर जोरे पास न जाय सकैं हिय हारा।
लक्षिमी जी के होस उड़ाने नेत्र बन्द करिके चुप मारा।
श्री प्रहलाद गये प्रभु के ढिग कर गहि कै चट गोद बिठारा।
हर दम नाना खेल लखै सो जो हरि पर तन मन को वारा।
अंधे शाह कहैं सतगुरु करि सुमिरौ नाम होहु भव पारा।१०।
चौपाई:-
सुकृत से भिड़त ठीक संयोग। सतगुरु बचन मिटै भव रोग।
प्रेम के आगे ज्ञान न जोग। अन्धे कहैं सुनो सब लोग।
पद:-
शुभ कर्म किया बैकुँठ भया सुमिरन बिन अवध को कौन गया।
बनि भक्त गये नहिं आती हया तन मन से फेंक्यो धर्म दया।
आडम्बर का है ज्ञान छया मन नाम के संग में नाहिं तया।
सतगुरु की वाक्य पै जौन नया अंधे कहैं सो सुख बीज गया।
सुमिरन खुलिगा ते जागे हैं, सुभ असुभ तीनि गुण तागे हैं।
जे सतगुरु वाक्य में तागे हैं अंधे कहैं ते सब आगे हैं।६।
पद:-
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छायल।
अमृत पियो सुनो घट अनहद सुर मुनि संग बतलायल।
नागिन जगै चक्र षट बैधैं सातों कमल फुलायल।
उड़ै तरंग मस्त हो भक्तों मुख से बोल न जायल।
गद गद कंठ रोम सब पुलकें नैनन आँसु बहायल।५।
तन कम्पायमान सब होवे रहि रहि सीस हिलायल।
भीतर बाहर एक भयो है तुरियातीत कहायल।
अंधे कहैं त्यागि तन निज पुर चढ़ि सिंहासन घायल।८।
पद:-
सतगुरु से सुमिरन जानि के बिधि लेख को आँका करो।
सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो अमृत को नित छाका करो।
धुनि नाम की लय तेज हो बस प्रेम में पाका करो।
अंधे कहैं इस रंग में दीनौं को लखि बाँका करो।
तन त्यागि के निज पुर चलौ तहँ दर्श पितु माँ का करो।५।
सुखसार का दीदार हो मन संग लै ताका करो।
नागिनि कमल चक्कर जगैं सब लोक भी झाँका करो।
जम काल माया मृत्यु सारे दुष्टों पर नाका करो।८।
पद:-
प्रेम में डूबा हुआ भगवान का जो भक्त है।१।
अंधे कहैं उसके लिए आनन्द ही हर वक्त है।२।
ध्यान धुनि परकास लै औ रूप सारे जक्त हैं।३।
तन त्यागि निजपुर को गया बैठा सिंहासन मस्त है।४।
पद:-
शंख चक्र गदा पदुम मुरली औ धनुषवान।१।
तीनों नाथ संग सोहैं शक्तीन के समान।२।
निरखै औ सुनै शब्द जिनके हैं नैन कान।३।
सतगुरु बिन अगम पन्थ अंधे कहैं सत्य मान।४।
पद:-
हरि सुमिरन में लागे चित्त अंधे कहैं सो होय सुचित्त।१।
सुमिरन सम कोई और न बित्त, चेतो यह तन होय अनित्त।२।
जीतै जान लेव क्या नित्त, बनि जावै तब उत्तौ इत्त।३।
चोरन के संग घूमत कित्य, आखिर में सब होवैं पित्त।४।
पद:-
नाम कि धुनि पर राखौ ख्याल।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो, गले न चोरन दाल।
ध्यान प्रकाश समाधी होवे, सन्मुख प्रिय नन्द लाल।
जगत ब्रह्म अरु शब्द ब्रह्म का, भेद मिटै तब हाल।
सुर मुनि भेटैं जय जय बोलैं जियतै भयो निहाल।५।
अमृत पियो भरा घट सागर, सुनिये अनहद ताल।
जारी........