॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
राम सिया सर्वत्र बिराजत लखने वाले थोरे जी।३।
अंधे कहैं अन्त साकेतै चलने वाले थोरै जी।४।
दोहा:-
राम नाम श्रुति सार है सागुरु से जान।
अंधे कह जियतै तरौ खुलि आँखी कान।१।
राम नाम सुमिरत नहीं जमन कि डिटि लागी।
अंधे कह पछितावगे अन्त समै ले टांगि।२।
राम नाम सुमिरत नहीं जम हैं पहरेदार।
अन्त समै अंधे कहैं डारैं नर्क मंझार।३।
जम निगरानी करत हैं राम भजा जे नाहीं।
अंधे कह तन छूट जस बांधि नर्क ले जाहिं।४।
कहरा गोरिन को सुनो नर्क में जम रहै गाय
अंधे कह बहु कष्ट दे जा कर के चिल्लाय।५।
पद:-
जाने राम नाम का पहरा।
सतगुरु से सब भेद लेव लै शांत करौ मन महरा।
ध्यान प्रकास समाधि धुनि हो रूप सामन् पहरा।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं उड़ैं स्वगंध के लहरा।
सुर मुनि मिलैं शीश कर फिरैं करि जै राम क हहरा।५।
अनहद बजै अमि रस पीजै गगन भरा है डहरा।
अंधे कहै धन्य सो प्रानी जो इस मारग ठहरा।
जियतै मुक्त भक्त बनि बैठा दोनो दिसि जस छहरा।
अन्त छोड़ि तन अवध में पहुँचा छूटि गया जग कहरा।
सुलभ तरीका बड़ा दीन हित अभिमानी को गहरा।१०।
कायम मुकाम तब हो सतगुरु से भजन सीखौ।
अंधे कहैं न मानौ चलि कै नरक मे चीखौ।१।
छिनाटिपणि कुँडली जन्म पत्र तेहि ठीक।
अंधे कह हरि भजन रंग जाको लागै नीक।१।
वेदन की बानी पढ़त कहत पढ़त हम वेद।
वेद तो सरगुण रूप हैं अंधे कह यह भेद।१।
जे जानहिं ते मानिहैं नेक करैं नहिं खेद।
अंधे कह हनुमान हर हमैं बताया भेद।२।
राम नाम है हा हा हूती। वाके अन्दर सकल विभूती।१।
अंधे कहैं अकथ मजबूती। सुरमुनि कोई सकत न कूती।२।
राखत राम भक्त की आरि। अंधे कहैं बिहंसि चूचकारि।२।
तन मन प्रेम दीन्ह्योबारि। सुर मुनि सब करते बलिहारि।४।
चोर तन में बसे कहर जीव को तंग करते हैं।१।
संग उनके मिला मन है भजन में विघ्न डरते हैं।२।
सुकृत सब लूट लें छिन में वो अपना ढंग पसरते हैं।३।
करै सतगुरु भजन जानै कहैं अंधे तब टरते हैं।४।
जम मारैं गरियावैं जीवन फेरि चिढ़ावैं टिलिलिलीलिलीहिलि।
सतगुरु किहे न हरि को सुमिरे भोगौ कल्पन टिलि...।
नर तन पाय नर्क को आयो मेरे दुशमन टिलि...।
अंधे कहैं भजन में लागौ सारा दोष देत सब कर्मन।
जिनके खुले न आँखी कान। वे जग चक्कर में लपटाम।
पांचौ चोर संग शैतान। हर दम करत रहत हैरान।
चहुं दिशि ते गांसे अज्ञान। कहते कहां रहत भगवान।
हमे कमाई करैं खान औ पान। झूठै लोग कथत हैं ज्ञान।
जारी........