॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
कहैं अंध शाह सतगुरु किरपा कोइ बिरलै आवै इस मग में।४।
पद:-
आतमा को जान लो परकास उसका रूप है।१।
परमात्मा उस में रमा जो सारी सृष्टि का भूप है।२।
सतगुरु बिना किमि लखि सकौ श्रुति कहत अगम अनूप है।
अंधे कहैं देखे बिना जन्मौ मरौ जग कूप है।४।
पद:-
बहुत नर नारि कम जग में कि जिनके लोभ नहिं मन में।
कहैं अन्धे कृपा सतगुरु जीत जियतै गय रन में।
ध्यान धुनि नूर लै पायो लखै सिय राम कन कन में।
सुनै अनहद पियै अमृत देव मुनि लिपटते तन में।
जगी नागिन चलैं चक्कर खिलैं सब कमल एक छन में।
त्यागि तन पहुँचिगे निजपुर भये रंग रूप हरि पन में।६।
पद:-
जानि मारग को सतगुरु से जौन सुमिरन में मन लाये।
वही फिर द्वैत को तजि कर भक्त अद्वैत हो जाय।
ध्यान धुनि तेज औ लय में जाय सुधि बुधि को बिसराये।
सुनै अनहद पियै अमृत देव मुनि उर में लिपटाये।
जगै नागिन चलैं चक्कर कमल एक तार उलटाये।५।
सुगन्धी बहुत बिधि की ले कहत मुख से न बनि आये।
सामने हर समै राजैं राम सीता छटा छाये।
कहैं अन्धे तजौ तन जब चलै निजपुर न जग आये।८।
पद:-
द्वैत को छोड़ कर भक्तों जौन अद्वैत हों जाये।१।
वही सतगुरु का चेला है यहाँ औ वहाँ जस छाये।२।
लगन उसकी लगी ऐसी जो तन काटौ न चिल्लाये।३।
कहैं अन्धे जियति तारै जो उनकी शरण में आये।४।
पद:-
सिया राम के भजन बिन नर तन बेकाम है।
सतगुरु करो पावो पता अनमोल चाम है।
धुनि ध्यान तेज लय मिलै शुभ अशुभ खाम है।
सुर मुनि तुम्हें आशीश दें हर दम अराम है।
दर्शन हो युगुल रूप का हर जाँ मुकाम है।५।
पीजे अमी को घट में झरता तमाम है।
अन्धे कहैं तन त्यागि चलो नित्य धाम है।
परकाश का वह लोक नहीं शुबह शाम है।८।
पद:-
ख्याल राखौ साधकों हर वक्त धुनि औ ध्यान का।
सतगुरु की बानी है यही परदा हटै अज्ञान का।
परकाश लय में जाव मिलि जहँ पर पता नहिं भान का।
देखौ छटा सिंगार छबि श्री जानकी भगवान का।
सुर मुनि लिपटि जै जै करैं जैसे बड़े मेहमान का।५।
दीनता औ प्रेम से स्वागत करैं जल पान का।
शान्ति से सब दे रहे बहु भाँति के पकवान का।
अन्धे कहैं तन तजि चलो साकेत पुर सुख खानि का।८।
पद:-
दूत मजबूत हैं जम के न बोलैं बेखता कीन्हें।
लिहे कागज हैं हुलिया का मिला करके उसे चीन्हें।
लात मुक्का तमाचा दें पटकि फिर बैठते सीने।
डाँटते सख्त गाली दै नाम हरि का नहीं लीन्हें।
बाँधि लै जांय निजपुर को काम अपने में परवीने।
कहैं अन्धे नर्क गेरैं करम जिन कीन हैं हीने।६।
शेर:-
मिला अन्मोल नर तन क्या सुकृत सब चोर हैं छीने।१।
श्री सतगुरु के बचनों पर कहैं अन्धे न मन दीने।२।
जारी........