॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
क्या यहां खिलाने आये तुम क्या यहां पिलाने आये तुम।
क्या यहां छिपाने आये तुम क्या यहां चेताने आये तुम।
क्या यहां घटाने आये तुम क्या यहां बढ़ाने आये तुम।
नाम कि धुनि परकास लै रूप भयो जब संग।
अंधे कह उस भक्त को हर दम ही हर गंग।१०।
राम नाम को सुमिरौ गिल्लो।
डारन डारन घूमत फिरती पकड़ लेय बिल्लो।
सतगुरु से करि मेल जाव जुटि बैठौ छोड़ि के हिल्लो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने खिल्लो।
अमृत पियौ सुनौ घट अनहद सुर मुनि के उर मिल्लो।५।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं कर्म शुभाशुभ किल्लो।
तुरिया तीत दशा भई जियतै कौन करै अब ढिल्लो।
अंधे कहैं अन्त लो निज पुर सब से ऊँचा टिल्लो।८।
दोहा:-
राम नाम को खाय के लेय चाय सो पास।
अंधे कह भव सीत को कर दे जियतै नास।
निज तन मन को सकल करि राम नाम में देस।
अंधे कह से कल्प भा दोनों दिसि सुखलय।
अनुभव की यह बात है सतगुरु शरनि ते जान।
अधे कह ते मनि है जिन के आंखी कान।६।
दोहा:-
राम नाम की ध्वनि सुनै हर सै से दिन रात।
उत्रा पन तब भानु हों अंधे कह यह बात॥
दोहा:-
रंरंरंरं हो तहै एक तार भन्नात।
अंधे कह जेनारि नर सुनै जियति तरि जात।
दोहा:-
मन इन्द्री बस में भई वाको भागोदान।
अंधे कह तन त्यागि कै निजपुर कीन पयान॥
दोहा:-
राम नाम में तुलि गयो तुला दाव भा जान।
अंधे कहत न छोड़ि कै निजपुर की नप यान॥
दोहा:-
दादुर क चरबी गरम गरम श्वान का मास।
अंधे कह जे खात हैं सीत न आवै पास॥
चौपाई:-
सीत न आवै पास चलै सब बदन पसीना।१।
पंखा से लें पौन पूस औ माह महीना।२।
निसि में खूब नहांय हंसै औ तानैं सीवा।३।
अंधे कह नर नारि कहैं को इसुर बसि कीन्हा।४।
दोहा:-
कितने बिष सेवन करे सीतन अंग समाय।
नरनारी देखैं कहैं इनमें है सिध्दाय॥
दोहा:-
कितने सा धन लीन करि सीत धाम नहिं लाग।
अंधे कह हरि भजन विना तन से मन रहै भाग॥
दोहा:-
कितने अंतर ध्यान विधि सिखि घूमत संसार।
अंधे कह सुमिरन बिना पावत नहिं सुखसार॥
दोहा:-
कितने वायू पियति हैं जल भोजन कछु नाहिं।
अंधे कह सुमिरन बिना बार बार चकराहिं॥
दोहा:-
नाना खेल दिखाय के ठगत नहीं ठगि जांहिं।
अंधे कह जन्मै मरैं चौरसी के माहिं॥
जारी........