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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

वह तो सीता राम की गोदी में जा कर सो रहीं।२।

चूमते चुचकारते फिर गुद गुदाई हो रही।३।

अंधे कहैं सतगुरु करै सच्चा बनै तब तो रही।४।

 

पद:-

सतगुरु करि बैठो साधन में, दुई बजे रात्रि से जागन में।१।

मन नाम के ऊपर तागन में, सुख शांति मिलै अनुरागन में।२।

देखौ हरि घर बन बागन में, बनि गयो भक्त बे रागन में।३।

अन्धे कहैं अवध के आँगन में, बसि गयो न आवत रागन में।४।

 

पद:-

सतगुरु करि जपो नाम जतन ते, भेंट होय सिया, राम लखन से।

अन्धे कह मन कर्म बचन ते, लागि जाव बचि जाव पतन ते।

क्या करने यहँ आये वतन ते, समुझि के निबको जनम मरन ते।

तुलसी दास के शब्द रसन ते, भरे परे मानस में कथन ते।

हर दम रहते जीव मगन ते, लखत छटा अनमोल दृगन ते।

जियतै में भे भक्त शरन ते, राम नाम धुनि सुनत करन ते।६।

 

पद:-

बहुत से पद हैं अनुभव के, पढ़ि जिनके जो हो गौं के।

जियति वे हैं तरे भौ के, जिन्हें शंका न हो जौ के।

ये तन तो एक दिन सौ के, जाय अगनी में धरि धौं के।

छोड़ि जे द्वार गे नौ के, वही सिय राम के भौंके।

फिरत जे जन यहां चौंके, उन्हीं के घर परे रौंके।५।

 

पाप के फैलि हैं बौ के, काम नहिं देय कोई मौके।

आय जम बांथि लें हों के , कहैं अन्धे नरक छौंके।

हाय रे हाय के झोंके, भये मल मूत्र के खौं के।८।

 

पद:-

राम नाम जपु राम नाम जपु राम नाम सुखदाई है रे।

सतगुरु से सुमिरन बिधि लै के, सूरति शब्द मिलाई है रे।

ध्यान धुनी परकाश समाधी, बिधि कर लेख मिटाई है रे।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाई है रे।

उमा महेश्वर दिब्य भोग दें नित-प्रति खात अघाई है रे।५।

 

सुर मुनि सब ठौरे दें दरशन, सब के शीश नवाई है रे।

अमृत पिये सुनै घट अनहद बाजत बिमल बधाई है रे।

राग रागिनी नाच गान करैं, देखत ही बनि आई है रे।

नागिनी जगै चक्र षट बेधैं, सातों कमल फुलाई है रे।

उड़ै तरंग फैलि जाय सब दिशि, मुख से बोलि न जाई है रे।१०।

 

जियतै में जो तै कर लेवै, वाकी वहां समाई है रे।

अन्धे कहैं त्यागि तन अवध में बैठि जाय स्थाई हे रे।१२।

 

पद:-

बिना सुमिरन के सुख तन से मिलै कुछ भी नहीं।१।

चेति मुरशिद को करो अबहीं दुःख कुछ भी नहीं।२।

नाम धुनि नूर समाधी व रूप सन्मुख हो। कर्म की रेख मिटी

बाकी रहा कुछ भी नहीं।३।

कहते अन्धे हैं यही सब से बड़ा है सुमिरन। देव मुनि हम से कहा

हमने कहा कुछ भी नहीं।४।

 

पद:-

तन्मयता में सुधि बुधि का कहीं पता नहीं रह जाता है।१।

कितनौ मार पड़ै तन ऊपर नेकहु नहीं बिसाता है।२।

मन गुण प्राण जीव औ आतम नागिन संग हरि पाता है।३।

अन्धे कहैं भया मुद मंगल बरनत नहीं सेराता है।४।

पद:-

मिलौ तो सतगुरु से चलि के भक्तौं बता दें तुमको अन्मोल बतियां।१।

धुनि नाम लय लेज रूप पाकर कटा लो जियतै करम की गतियां।२।

सुनो घट अनहद पिओ अमी रस मिलैं नित सुर मुनि लगा के

छतियां।३।

कहैं यह अन्धे सुफ़ल हो नर तन सुधर गईं जब हैं मन कि मतियां।४।

जारी........