॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
तुलसी दास कही ये बानी अंधे के मन भाय।
है अनमोल अतौल नाम धन जो कोई सकै बचाय।
तब तो हर दम मस्त रहै वह सुनत लखत बनि आय।
ध्यान प्रकाश समाधि धुनी क्या हर शै से भन्नाय।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाय।
अमृत पियै बजै घट अनहद सुर मुनि भेंटैं धाय।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल फुलाय।
एक सहस अरतालिस तरह की स्वरन ते महक उड़ाय।
फरकैं अधर रोम सब पुलकैं कंठ बोलि नहिं जाय।१०।
तन कम्पाय मान सब होवै नैन नीर झरि लाय।
मस्ती छाय गई शिर हालै तन तजि निज घर पाय।१२।
पद:-
सतगुरु करि सुमिरो राम नाम,छोड़ो यह मेरा तेरा है।१।
या में तो माया खेलकरे या से नहिं होत निबेरा है।२।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि रूप पावे नहिं जग में फेरा है।३।
अंधे कहैं भक्तों चेत करो, यह चन्द दिनों का डेरा है।४।
शेर: बखेड़ा करने वाले जो तुम्हारे तन में घुसरे हैं।१।
कहैं अंधे करो सुमिरन तो आपै आप सुधरे हैं।२।
लगी जिसके है दिल में यह हमारे हैं बहुत चेला।३।
कहैं अंधे वह है जकड़ा दोऊ दिशि ते गया बेला।४।
दोहा:-
दुध बरिया हरि नाम की सतगुरु करि जो खाय।
अन्धे कह जियतै तरा सुर मुनि करत बड़ाय।
पद:-
जानो राम नाम की खाँसी।
सतगुरु करो भेद तब पावो बने बैठ दुख राशी।
हर शै से भन्नाय रही है, रोम रोम सुनि हांसी।
सारे चोरन मारि निकारै घऱ में लेय तलाशी।
मन जब मेल करै तुम्हरे सँग कौन सके फिर गांशी।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि जो रहते अविनाशी।
हर दम सब दिशि दरशन देवैं और न दूजा भाशी।
अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो छूट गई चौरासी।८।
दोहा:-
राम नाम को जानि कै, सतगुरु ह्वैगे राम।१।
अन्धे कह सुमिरन करो, है अमोल बे दाम।२।
सतगुरु की महिमा बड़ी, को कर सकत बखान।३।
अन्धे कह वे तो भये, नाम जानि भगवान।४।
पद:-
जानकी जानतीं राम के नाम को।
राम जी जानते जानकी नाम को।१।
करते अन्धे बिनय प्राण के प्राण को।
करके सतगुरु सिखा ज्ञान विज्ञान को।२।
दोहा:-
राम नाम की निव पड़ी, महल भयो तैयार।१।
अन्धे कह ता में बसे, राव रँक बट पार।२।
जब तक तन में सांस है, तब तक सबकी आश।३।
अन्धे कह जस भै बिलग, तब सब कहते लाश।४।
चौबोला: तब सब कहते लाश जाय मरघट में फूँकैं।
जरै मांस औ हाँड़ चिराँइधि आवै थूकैं।
दूर खड़े ह्वैं जाँय उठत तहाँ अगिन बबूकैं।
करै कपार की क्रिया बाँस कोंचैं नहिं चूकैं।
निज निज घर फिर जांय मनै आवै सो पूकैं।५
जारी........