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॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥(२)

 

अंजनी कुमार हेम भूधरा समान देह,

रुद्र अवतार सोच संकट निकन्दना।

प्रबल प्रचण्ड रूप महाबीर नाम सुनि,

भूत भागि जात छूटि जात भ्रम फंदना॥

दुष्ट को दलन बीर धीर गदा बज्र धर,

साधु संत हेतु मानो शीतल सो चन्दना।

ऐसो हनुमन्त भगवन्त के सपूत दूत,

हूजिये दयालु नागा दास करैं बन्दना॥