॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥(५)
शीश पै टोपी लंगोट कसै कटि,
कानन में दुहुँ कुंडल छाजै।
भाल बिशाल जनेऊ गले शुभ,
लोचन मस्तक चन्दन राजै॥
दोउ हाथन बज्र गदा झमकै छवि,
देखत ही दुख दारिद भाजै।
कहैं दास नगा धन बांके बली,
निजनाम गढ़ी मँह बीर बिराजैं॥