साईट में खोजें

११ ॥ श्री शिव जी ॥


रेखता:-

लगावो शब्द में सूरति दरस हों श्यामसुन्दर के ॥१॥

रहैं सन्मुख तेरे हर दम खुलैं जब नैन अन्दर के ॥२॥

जियत में मुक्त हो जाओ भक्त तब हो विश्वम्भर के ॥३॥

सत्य यह योग का मारग बचन मानो दिगमबर के ॥४॥


दोहा:-

हरि में गुरु में भेद नहिं, जो हरि सन्मुख होय ।

कहन सुनन की बात नहिं, जानि लेय सो होय ॥१॥