१९९ ॥ श्री बनखण्डी बाबा जी ॥
पद:-
सुनिये ओंकार का शोर।
सतगुरु करि जप की बिधि जानो छूटै जग से डोर।
ध्यान धुनी परकाश दशा लटा जहां मोर नहिं तोर।
अनहद सुनो मिलैं नित सुर मुनि गिरैं प्रेम के लोर।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि जोर।
जियत लखै सो मुक्त भक्त हैं नाहीं तो है चोर।