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२०० ॥ श्री माधव शाह जी ॥

पद:-

घट में माल स्वांस ते जारी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो हो मुद मंगल भारी॥

ध्यान प्रकाश समाधि होय तब अनहद धुनि हर बारी॥

अमृत पिओ देव मुनि आवैं जय बोलैं दै तारी।

सन्मुख झाँकी रहै टरै नहिं श्री राम सिय प्यारी॥

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो परो न गर्भ मँझारी॥