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२६२ ॥ श्री जगदम्बा वख्श सिंह जी ॥

 (मिथिलापुर निवासिनी)

दोहा:-

नारायण के दर्श भे, अन्त समय मोहिं जान।

तन तजि सिंहासन चढ़ेन, हरि पुर कीन पयान।

कोटि वर्ष तहँ पर बसैं, श्री प्रभु कह्यौ सुनाय।

द्विज कुल में फिर जन्म लै, भजन करै मन लाय।४।

मरै वासना सबै जब, तब साकेत को जाय।५।

 

नाहीं तो जन्मै मरै, सत्य भेद हम पाय।६।

कह जगदम्बा बख्श मोहिं, सब प्रकार सुख मान।

वरनन केहि विधि करि सकौं, धरि कै देखौ ध्यान।८।