२९७॥ श्री खुशखुर्रम शाह जी बगदादी ॥
(अपढ़, खलक़ का तवाफ़ करने वाले, हकीम लुकमान के मुरीद)
चौपाई :-
सब से नीच बनै जो कोई। चारि पदारथ पावै सोई॥
शान्ति दीनता गोद खिलावै। छोटे बालक सम दुलरावै॥
चारि पदारथ हैं तन माहीं। मन संग लै कोइ खोजत नाहीं॥
इधर उधर भटकत जग माहीं। बिन मुरशिद के मिलत न राहीं॥
प्रेम भाव औ करि बिश्वासा। छोड़ि देव जब जग की आशा।५।
नाम कि जाप करौ मन मारौ। भूख पियास को पकड़ि पछाड़ौ॥
जाड़ घाम तब नहीं सतावैं। माया मोर मौन ह्वै जावैं॥
जपति जपति तब पट खुलि जावैं। संमुख षट् झांकी छबि छावैं॥
जियतै मुक्ति भक्ति औ ज्ञाना। पाय गयो भक्तौ करि ध्याना॥
निर्भय औ निर्बैर गयो बनि। बारह बरस क ह्वै गा यह तन।१०।
अजर अमर तब यह कहलावै। प्रभु कृपा से कोइ कोइ पावै॥
नाम कि धुनि हरदम भन्नावै। सूरति शब्द में जाय समावै॥
सुर शक्ती ऋषि मुनि सब दरशैं। बिहंसि बिहंसि सिर पर कर परसैं॥
फिर विज्ञान दशा ह्वै जावै। खेल करैं जोई मन भावै॥
बड़े सुकृति से यह पद पाई। शारद शेष न सकत बताई।१५।
श्री नानक जी ने कहा है:-
चौपाई:-
संत कि महिमा वेद न जानैं। जेता सुनैं तेता बखियानैं॥
श्री गोस्वामी जी ने कहा है :
चौपाई:-
विधि हरि हर कवि कोविद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी।
फिर कुछ हमारी बातैं कहा और अन्तर हो गये।