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३० ॥ श्री कबीरदास जी ॥

जारी........

बचन गुरु के मानि लेव तो अब ही नहिं कछु हानी जी ॥३१॥

सांचे ह्व कै खेलौ भाई तब खुश होंय सुभानी जी ॥३२॥

गुरु भाई रैदास औ हम ते श्री गुरु बोले बानी जी ॥३३॥

सूरति शब्द कि जाप केर परचार करौ दोउ ज्ञानी जी ॥३४॥

निर्गुन सर्गुन भेद को जानो जो मानो मम बानी जी ॥३५॥

आज्ञा मानि दोउ जन लीन्हा जै जै गुरु सुखदानी जी ॥३६॥

साका तेहि की चलै बहुत दिन जो गुरु बचन को मानी जी ॥३७॥

बैठि बिमान अमरपुर जावै जहँ अति सुख की खानी जी ॥३८॥

जियते में मरि जाय यहाँ पर सो पावै यह जानी जी ॥३९॥

कहैं कबीर सुनो भाइ सन्तों सतगुरु किरपा मानी जी ॥४०॥


दोहा:-

शब्द न पृथ्वी में गड़ै जल बूड़ै नहि शब्द ॥४१॥

शब्द न अग्नी में जलै हवा उड़ै नहिं शब्द ॥४२॥

शब्द न काटे कटि सकै मारे मरै न शब्द ॥४३॥

शब्द आत्मा जानिये सत्य पुरुष का शब्द ॥४४॥

शब्दै सृष्टी रचत है पालन करता शब्द ॥४५॥

शब्दै परलय करत है सब में ब्यापक शब्द ॥४६॥

शब्द राम का नाम है र रंकार यह शब्द ॥४७॥

शब्दै सुर मुनि सब जपैं सही सही यह शब्द ॥४८॥

शब्द यथारथ बीज है सब मंत्रन में शब्द ॥४९॥

शब्द सबन सिरताज है, सब का मालिक शब्द ॥५०॥

शब्द मिलै सतगुरु से है सब के ढिग शब्द ॥५१॥

शब्दै लखै कबीर जो सो ह्वै जावै शब्द ॥५२॥

पाठ करै माला जपै जपै बैखरी नाम ॥५३॥

धर्म और उपकार व्रत सुखवै तन को चाम ॥५४॥

तीरथ सब घूमै चहै झूलै आठो याम ॥५५॥

हौन करै तन काटिकै पावै नहिं विश्राम ॥५६॥

यह मारग बैकुण्ठ तक आवागमन मुकाम ॥५७॥

रामानन्द क शिष्य हूँ नाम कबीर गुलाम ॥५८॥

राम नाम गति ऊँच अति धुनी होय एकतार ॥५९॥

सन्मुख दर्शन राम के ताको बेड़ा पार ॥६०॥

कृष्ण रू प ते आप हैं विष्णु रूप ते आप ॥६१॥

राम रू प ते आप हैं सबै रूप हैं आप ॥६२॥

कृष्ण नाम हैं आप ही विष्णु नाम हैं आप ॥६३॥

राम नाम हैं आप ही सबै नाम हैं आप ॥६४॥

कह कबीर कहँ लगि कहूँ लीला अगम अथाह ॥६५॥

अपनै आप को लखत हैं अपनै बे परवाह ॥६६॥

नाम कि धुनि परकाश जेहि सन्मुख हर दम होय ॥६७॥

ब्रह्मानन्द कहैं उसे जाय दुई तेहि खोय ॥६८॥

नाम रूप परकाश लय चारौं पावै जौन ॥६९॥

परमानन्द कहैं उसे धन्य धन्य जग तौन ॥७०॥

ऐसे संतन के दरस करै जो प्रेम लगाय ॥७१॥

तन मन के पातक मिटैं सो नरकै नहिं जाय ॥७२॥

अच्छे कुल में जन्म हो राम नाम में प्रीति ॥७३॥

सुर मुनि संतन यह कही मानो बचन प्रतीति ॥७४॥

तन मन प्रेम से जौन कोइ भोजन देंय पवाय ॥७५॥

चरणोदक जूठन चखै सो बैकुण्ठ को जाय ॥७६॥

नेम प्रेम से जायकर जो कोइ बैठै पास ॥७७॥

बोलै या बोलै नहीं नित प्रति बढ़ै हुलास ॥७८॥

अनुभव तेहि होने लगैं होवै राम क दास ॥७९॥

कह कबीर सुनि लीजिये बात कही हम खास ॥८०॥

पढ़ना सुनना सब सही पढ़ि सुनि जो कोइ लेय ॥८१॥

जारी........