३१३ ॥ श्री बचावन शाही जी ॥(५)
जाते भगत निज धाम को चढ़ि यान हरखाते हुये।
सुर मुनि सभी जै जै करैं निज साज चटकाते हुए।
रंग रंग की माला गले में फूलों कि पहिनाते हुये।
पंखा मुरछल आसा बल्लम झण्डा फहराते हुये।
नाचैं अप्सरा गान करि करि फूल बरसाते हुये।५।
सतगुरु करौ नैनन लखौ क्यों जक्त में माते हुये।
धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख श्याम छवि छाते हुये।
देव मुनि भेटैं तुम्हैं हरि के चरित गाते हुये।
अनहद सुनो अमृत पिओ पितु मातु के काते हुये।
लेते कमा जे जन यहां ते बैठि वहँ खाते हुये।१०।
जिसने न जाना जियति में ते दोनों दिशि ताते हुये।
पीटैं नरक में दूत हर दम कल न पल पाते हुये।
मानो कहा नर नारि चेतो क्या हौ बतलाते हुये।
गर्भ का रिन दो चुका हम सब को समुझाते हुये।
खोते समय अनमोल हो नाहक में अलसाते हुये।
दुर्लभ यह तन चारों पदारथ देत मन भाते हुये।१६।