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३८ ॥ श्री जानकी जी ॥


दोहा:-

भक्तन सँग लीला करैं, नाना रूप बनाय ।

प्रेम के वश जब होत हैं, माधव श्री रघुराय ॥१॥

गुरु दयाल तुम पर भये, दीन शब्द का रंग ।

आशिरवाद हमार यह, रहो सदा हरि संग ॥२॥