४२४ ॥ श्री खुशाल जोशी ॥
पद:-
सीता पति राम चन्द्र मेरो दु:ख हरौ नाथ।१।
दीनन के दीना नाथ कीजै मो को सनाथ।२।
चोरन गहि लीन साथ, मानत नहिं धरे माथ।३।
चारों दिसि ते अनाथ सिर पर प्रभु धरो हाथ।४।
पद:-
सीता पति राम चन्द्र मेरो दु:ख हरौ नाथ।१।
दीनन के दीना नाथ कीजै मो को सनाथ।२।
चोरन गहि लीन साथ, मानत नहिं धरे माथ।३।
चारों दिसि ते अनाथ सिर पर प्रभु धरो हाथ।४।