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४४१ ॥श्री कुजँनी माई ॥

(२)

सतगुरु करि पढ़ि लो नाम सबक। मिटि जावै जियतै भव की हबक॥

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि जमक। सुर मुनि आवैं करि लेंय लपक॥

अनहद की सुनिये मधुर घमक। अमृत को चाखों रहा है टपक॥

सब असुर आप हीं जांय दबक। देखौ घट में चौदहौं तबक॥

सन्मुख हों श्यामा श्याम छमक। नाना विधि लीजै पार गमक॥

तन तजि बैठो जहं जल न गपक। शशि उठान सूर्य्य न पवन धमक।६।