४४४ ॥ श्री बड़ी अम्मा जी ॥
(ऋण मोचन घाट, श्री अयोध्याजी)
पद:-
श्री हरि पूजन सुमिरन कीन्हा। अन्त छोड़ि तन हरि पुर लीन्हा।१।
पूजा पाठ धरम औ सुमिरन। जे जन करैं लगाय के तन मन।२।
ते सब जाय वास वहं पावैं। सब प्रकार सुख बरनि न जावै।३।
कहैं बड़ी अम्मा गुनि लीजै। नर तन पाय सुफल करि लीजै।४।