४६२ ॥ श्री निछावर शाह जी॥(३)
पद:-
पतोहू दशरथ की बड़ी नीकी।
संग दमाद जनक के सोहैं जलन जाय लखि जी की।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मन तब कवहूँ न डीकी।
ध्यान धुनि परकाश दशा लय खाव सुहारी घी की।
ऐसा स्वाद बताय सकौ क्या होय न कबहूँ फीकी।५।
अमृत पिओ सुनो घट बाजा सुर मुनि प्रेम में बीकी।
कमल चक्र शिव शक्ती जागै जैसे चट कोइ छींकी।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ छूटै सारी टीकी।८।