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४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(७)

 

अजपा जाप अलेख अकथ औ अगम अपार अकह जानो।

राम दास नागा कहैं भक्तों,सतगुरु करिके सुख मानो॥

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने में तानो।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो छूटै जग को चकरानो॥