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४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(९)

 

पहले शंकर भजन बतायो फेरि वही बजरंग।

तिसरी बार गुरु नानक जी लीन उठाय उछंग॥

आँखी कान गये खुलि भक्तों तन मन भरा उमंग।

अमृत छकौं बजैं घट बाजा सुर मुनि रहते संग॥

सिया राम की झाँकी सन्मुख अदभुत शोभा ढंग।

ध्यान धुनी परकाश दशालय जहां रूप नहिं रंग॥

नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमलन उड़ै तरंग।

अन्त त्यागि तन निज पुर पहूँचै गर्भ बास भा भंग॥

राम दास नागा कहैं भक्तों भीतर बाहर नंग।

निरभय औ निरबैर वही है जीति गयो जग जंग।५।