४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥
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जब तक हत्थे में नहीं, तक तक चक्कर खाय।
राम दास नागा कहैं, मिलै न ऐसा दांव॥
राम दास नागा कहैं, सतगुरु के ढिग जाव।
सबै पदारथ पास हैं, तन मन प्रेम से ताव॥
सारी पृथ्वी घूमिया, अन्तर ध्यान की चाल।
राम दास नागा कहैं, राम नाम तन ढाल॥
जाको जा पर भाव जस, ताको तस फल होय।
राम दास नागा कहैं, शेष सकत नहिं गोय॥
भाव के वश भगवान औ, सारे सुर मुनि सन्त।
राम दास नागा कहैं, भाव का आदि न अन्त।२५।
प्रेम भाव भगवान हैं, जब बिलगावै दोय।
राम दास नागा कहैं, तब जानै कोइ कोय॥
राम दास नागा कहै, होय भक्त सो पास।
दया धर्म छोड़ै नहीं, जब तक तन में स्वांस॥
पढ़ब लिखव औ सुनव सब, मत्थे का है ग्यान।
राम दास नागा कहैं, पकड़ै शान औ मान॥
सीना मस्तक सम करौ हृदय हाट की सैर।
राम नागा कहैं, बनि जावौ निर्वैर॥
सुमिरन बिन छूटै नहीं, भव सागर की पैर।
राम दास नागा कहैं, बचन गुनो हो खैर।३०।
पढ़ि सुनि कर साधक बनै, जानि न पायो राह।
राम दास नागा कहैं, पड़िहैं नरक अथाह॥
भक्त औ भगवान का, तन मन एकै जान।
राम दास नागा कहैं, सतगुरु बचन प्रमान॥
चुपकै छिपकै भजन करि, जियति लेव सब जान।
राम दास नागा कहै, तब होवै कल्यान॥
सतगुरु बचन में प्रीति नहिं, भजन करत बेकार।
राम दास नागा कहैं जैहें नरक मझार॥
किसी की सरबरि मत करौ, नाम से राखौ प्रेम।
राम दास नागा कहैं, यही भक्त का नेम।३५॥
अजर अमर वे सन्त हैं, जिन पायो हरि नाम।
राम दास नागा कहैं, सुफ़ल भयो नर चाम॥
अणू अणू में रमि रहे, राम राम के दास।
राम दास नागा कहैं, सतगुरु करि हो पास॥
भगतन की लीला अकथ, को करि सकै बखान।
राम दास नागा कहैं, शारद शेष चुपान॥
व्यंग बचन सबके सहै, लगै न नेकौं चोट।
राम दास नागा कहैं, सो जानो हरि ओट॥
पूरण किरपा होय जब, साधक होवै सिद्ध।
राम दास नागा कहैं, गुनै नहीं ते गिद्ध॥४०।
निंद्या मल को धोय ले, स्तुति मल ले लादि।
राम दास नागा कहैं, साधक हो बरबाद॥
राम दास नागा कहैं, झूठे बनो न भक्त।
हरि सबकुछ देखैं सुनैं, सारे जग हर वक्त॥
राम दास नागा कहैं, मातु पिता परिवार।
भजन करौ तरि जांय सब, सुर मुनि वेद पुकार॥
राम दास नागा कहैं, सांचा है दरबार।
पहुँचै साधक जब वहां, भजन करै एक तार॥
निंद्या स्तुति से भरा, यह सारा संसार।
राम दास नागा कहैं, भजन करैं सो पार।४५।
राम दास नागा कहैं, निन्दा है बड़ पाप।
जो करिहै सो भोगि है, बैरी बनो न आप॥
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