५७० ॥ श्री अगने शाह जी ॥
पद:-
कचेहरी कच तक हरि लेती।१।
सौ झूठी दस सांची जहं पर ता पर दम देती।२।
कर्म धर्म तहं टिक नहिं सकते बिगड़ जात नेती।३।
पाप मकान बन्यो शुभ महि पर बुद्धि को गहि रेती।४।
जियतै नर्क में ठेठर मानो अंत वही खेती।५।
धन ग्रह कुटुम्ब स्वपन का स्वपना हरि सुमिरो चेती।६।