६५४ ॥ पं. अविनाश चन्द्र जी अमरावती ॥
पद:-
मिलता नहीं पर है मिला सुमिरन करो सब में लखौ।
धुनि ध्यान लय परकाश हो अनहद सुनो अमृत चखौ।
सुर मुनि मिलें छाती लगा वह सुःख किमि मुख से भखौ।
नागिन जगै चक्कर चलें कमलन के फूलैं सब पखौ।
सन्मुख में राधे कृष्ण हों संग सब सखी औ सब सखौ।५।
यह मार्ग सूरति शब्द का सतगुरु को तन मन दे सिखौ।
जियतै में सब तै जाय ह्वै मेटो विधाता का लिखौ।
अविनाश कह तन छोड़ि के फिर गर्भ में काहे कखौ।८।