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६७८ ॥ श्री बाबा मौजी राम जी ॥

(मुकाम सागर)

 

पद:-

भक्तों खोलो आखैं हिय की।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जरनि जाय तब जिय की।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख छबि सिय-पिय की।

सुर मुनि आय स्वहारी दें नित कामधेनु के घिय की।

हरि सुमिरन बिन संगति झूठी मात पिता भ्राता सुत तिय की।

धन मकान जग मान बड़ाई जानो दुख के विय की।६।