६ ॥ श्री मियाँ रुस्तम जी ॥
कजरी:-
निशि दिन सुरति शब्द में लागी उठैउर आनन्द भारी हो ॥१॥
पाँचों तीन पचीस चारि गे आपुइ हारी हो ॥२॥
अनहद बाजा घट में बाजै मधुर मधुर धुनि प्यारी हो ॥३॥
र रंकार धुनि रोम रोम ते उठत करारी हो ॥४॥
उनमुनि बैठि जोति दर्शन करि सुन्दर रूप निहारी हो ॥५॥
तीनि गुणन ते परे ध्यान तब होवै मुक्ति तुम्हारी हो ॥६॥
सतगुरु ने यह भेद बताया मंगलकारी हो ॥७॥
रुस्तम अर्ज करै कर जोरे धनि धनि भाग्य हमारी हो ॥८॥
शेर:-
राम जी रकार सरकार क्या हमारे हैं ।
मातु जी मकार क्या अनूप रूप धारे हैं ॥१॥
कजरी:-
प्रभू का देखि अनुपम रूप हमारा मन मस्ताना है ॥१॥
हर दम झाँकी सनमुख रहती कृपानिधाना है ॥२॥
तीर्थ देव सब घट ही अन्दर कहीं न जाना है ॥३॥
सुर नर मुनि जाको गुन गावैं वेद पुराना है ॥४॥
अपनी सूरति आपुइ आशिक हेरत आप हेराना है ॥५॥
अपने को अपना जप करता अपनै हँसना गाना है ॥६॥
सतगुरु से जब भेद मिला अभ्यास कीन तब माना है ॥७॥
प्रेम में मस्त भये रुस्तम तब पारब्रह्म पहिचाना है ॥८॥
शेर:-
सुनिये बचन करिये भजन, छोड़ो कपट अभिमान को ॥९॥
करिके यतन हो जा मगन, देखौ हमेशा श्याम को ॥१०॥
गज़ल:-
क्या मोहनी मूरति मेरे सन्मुख में मुसकाने लगी ॥११॥
तान मुरली की मेरे तन मन को ललचाने लगी ॥१२॥
छा राग छत्तिस रागिनी स्वर भर के फिर गाने लगी ॥१३॥
सखा सखियों को लिये क्या रास दिखलाने लगी ॥१४॥
प्रेम के वश हो मेरे हाथों से फल खाने लगी ॥१५॥
रुस्तम की अर्ज़ी सुनिये सतगुरु रोज़ अब आने लगी ॥१६॥
दोहा:-
राम कृष्ण दोउ एक हैं, या में भेद न कोय ।
जो कोइ भेद लगाइ है मुक्ति भक्ति नहिं होय ॥१॥