७४२ ॥ श्री मोती माल खां ॥
पद:-
मन मानि जाव मम बतियां तब होय भला।१।
नहिं कोई यहां तब सथिया भजु राम लला।२।
यह आवै न आवै संसिया सब जात चला।३।
मोती माल कहैं दिन रतिया भजु छोड़ि कला।४।
७४३ ॥ श्री जलालुद्दीन जी ।
पद:-
हरि सुमिरन नहि करौ नर्क चलि अति दुख पावोगे।
परै पिटाई हर दम यारों खुब चिल्लाओगे।
फर फर फर फर बकत वहां कैसे समझाओगे।
लेखा नाम क जब माँगेंगे क्या दिखलाओगे।
कल्पों रक्त पीव के हौजन में उतराओगे।५।
यहां पै पाप कर्म हौ करते सुख किमि पाओगे।
सतगुरु से लै राम नाम जब नेह लगाओगे।
तब सब काम ठीक बनि जावै हरि ढिग जाओगे।
सूरति शब्द क मारग प्यारे जब तुम पाओगे।
राम सिया की झांकी हर दम लखि सुख पाओगे।१०।
धुनी ध्यान लय नूर पायकै जग बरताओगे।
कहैं जलालुद्दीन रूप हरि का बनि जाओगे।१२।
७४४ ॥ श्री ईदू साईं जी ।
पद:-
नाम सिय राम क जपना। नहीं तो जगत फिरि टपना॥
बृथा बकवाद में खपना। तो होगा नर्क में थपना॥
जगत दिन चारि का सपना। यहां नहि कोई है अपना॥
अरे मन मूढ़ भजु कसना। किया इकरार जो रसना॥
भूलि सब जायगा हंसना। होय दरबार जब चलना।१०।
धरा खाता वहां देखना। जौन कीन्हे लिखा लिखना॥
नाम धन से भरो बसना। झूँठ पढ़ते हो क्या पढ़ना॥
बार ही बार जग फँसना। न बूढ़ी हो कभी तृष्णा॥
चहौ गर नर्क से बचना। ढूँढ़ि सतगुरु के परु चरना॥
बता दें जप उसे जपना। और की बात मति मनना।२०।
शब्द पर सूर्ति को धरना। खुलैगी नाम धुनि सुनना॥
ध्यान लय नूर का खिलना। राम सीता कि छबि लखना॥
दीनता पद सदा गहना। प्रेम में मस्त हो रहना॥
बुरी अच्छी सबी सहना। बुरी अच्छीसबी सहना॥
किसी से कुछ नहीं चहना। काटि अभिमान के पखना।३०।
देंय सतगुरु कि गहु शरण। देंय सतगुरु कि गहु शरना॥
कहैं ईदू मानु बचना। अन्त हरिपुर क हो चलना।३२।
दोहा:-
जियतै में सब तय करै, सोई हरि ढिग जाय।
नाहीं तो जन्मै मरै ईदू कहैं सुनाय।१।
७४५ ॥ श्री नेवाजी शाह जी ।
पद:-
हरि नाम रूप हर जा देखो उघार नैना।
सतगुरु करो जब प्यारे तब होगि तुम को चैना।
पढ़ि सुनि बने हो मैना। जंगाय गा है अयना।
बातों से कछु सरै ना। झूठे ये सब हैं सैना।
कहते वहां बनै ना। तन पर चलैंगे पैना।
पाखण्ड के ये धैना। हो नर्क बास लेना।१०।
जग आया सो रहै ना। यहँ चारि दिन क रहेना।
सूरति शब्द क गहेना। धुनि ध्यान नूर चहेना।
लय में तो सुधि रहै ना। आवै उतरि क्या कहेना।
तन मन से हो जब चहेना। तब राम सीता लहेना।
जारी........