॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल २९ ॥ (विस्तृत)
३८६. तुम्हारे दुख से हमें दुख होता है।
३८७. भगवान के हुकुम में रहे। फिर सब जगह वैकुण्ठ ही है। जो मनमानी करते हैं, दुखी रहते हैं, मरने पर नरक होता है। कुछ ऐसा मान कर रहो।
३८८. जब सहन शक्ति आ जावे, मन खुश, शान्ति रहने लगे। तब आओ कुछ बतावें। चोर शान्त हो जायें, अंाखी कान खुल जांय। जियते तर जाओ, अच्छी गती होगी।
३८९. मन से उठते बैठते चलते फिरते, घर का सब काम करते समय, सोते समय, 'राम राम' कहा (कहो)।
३९०. बुद्धि पलटै (पलटने) का मंत्र दुर्गा जी का है। तुम चिन्ता छोड़ कर मन लगा दो। सब काम आर्शीवाद से हो जाय। हमें यह बताने की भगवती ने आज्ञा दी है।
३९१. हम जब से राम सिंह पर सर मान दिया और महावीर पर धड़ माना, डाक्टर ज्योतिषी जवाब दे चुके थे। एक ९ वर्ष रहे एक दस वर्ष रहे। तब भगवती ने कहा - सर धड़ हमारा हो गया। तुम पूजा, पाठ, दान, जप, कीर्तन, कथा बता दिया करो। जो सरधा विश्वास से करेगा उसका भला होगा। तब से उसी बात को बताते हैं। जो मन लगाकर करता है उसका काम हो जाता है।
३९२. सन्यास बहुत कर्रा (कठिन) काम है। भजन करने से गती होती है।
३९३. भजन करने वाले को अपनी जीत प्यारी नहीं होती, अपनी हार प्यारी होती है।
३९४. भगवान को सच्चा भाव पसन्द है।
३९५. नाम में लग जाओ, जुट जाओ।
३९६. नानक जी ने कहा है:-
पंडित सो जो मन को बोधै।
राम नाम आतम में सोधै॥
३९७. पैहारी जी ने कहा है:-
पंडित परम तत्व को जानै।
करि पावै तब ठीक ठिकाने॥
पर बोधै जो शरनि में पावै।
सो पंडित उत्तम गति पावै॥
३९८. फलाहार दूधाहार से लाभ नहीं, सच्ची कमाई और सादा भोजन स्वाद रहित और कम खाना। फलाहार दूधाहार मंहगा भी परता है। और मान अंह की शंका रहती है।
३९९. अनमोल वस्तु दे दी जाय, गांठ बांध कर धरी (धरे) रहेगा। क्या लाभ होगा?
४००. एक माता को लिख कर दिया:-
जिस देवी देवता से प्रेम हो, घर पर रहकर उनका नाम जप करो। सब घर पर ही मिलते हैं। जितना खरचा तीर्थ में जाने से होता है उतने की खिचड़ी १ सेर २ तोला नमक ४ पैसा गरीबों को बांट दो। अगर विश्वास होगा घर पर ही प्रकट होकर दर्शन देंगे।