॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३० ॥ (विस्तृत)
४०१. भगवान में प्रेम तब होगा - बेखता कसूर कोई गाली दे तुम रंज मत करो। बस भगवान मिल जांय, तब घर का काम भी ठीक रहे। यह कुंजी है।
४०२. देवता गुरू को पकड़कर फिर चिन्ता न करे। भगवान दीनदयालु हैं। दीन बन जाओ।
४०३. जब तुम्हारे १०० जूता मारे जांय रंज न करौ, तब सब देवी देवता मिलने लगें। यह कुन्जी (से) भजन में सफलता मिलकर भगवान की विशेष कृपा मिलती है।
४०४. महाराज जी के चरणों मंे कुछ कड़े दाने थे। कोई दवा लगाता तो कहते हम अच्छा न होने देंगे दवा चाहे जितना लगाओ। हमारे यह मेहमान है।
४०५. घर में रहकर भजन करो। मन साधू हो जाय तब साधू बनना। हमें ५१ बर्ष हो गये। ८० की उम्र है (१९७३ में)। अपने परिवार का पालन करो। सच्ची कमाई, तब भजन होता है। जिस देवी देवता से प्रेम हो उसमें थोड़ा मन लग जाय, देवी देवता मिलने लग जांय।
४०६. जंत्र मंत्र के लोगों ने तमाम ग्रंथ बनाये। वे सब हजारों वर्ष से नरक में परे हैं।
४०७. एक साधू था काशी में। वह अमजाद (सिद्धि) से कचहरी में फाइल निकाल कर जला देता था। ऐसे काम करने वाले को नरक होता है। पर डर नहीं है।
४०८. भैया राम राम करो, थोड़े दिन में चलना है।
४०९. मूड़ मुड़ाने या जटा रखने से क्या लाभ जब तक मन न लगे।
४१०. १० बजे सोवे ३ बजे उठो १ घन्टा सौच स्नान करके, सूर्य न निकले साधन समाप्त हो जाय।
४११. एक व्यापारी भक्त के लिये:
मुनाफा कम लो, बिक्री होने लगेगी।
४१२. नेक कमाई, शुद्ध भोजन, ब्रह्मचर्य, परहेज करने पर रोग जाता है।
४१३. इन्द्री में १ ही अवगुण है जिव्हा में अनेक हजार अवगुण हैं।
४१४. बीमारी में हाथ पांव धो ले कपड़े बदल ले। २ बूँद गंगाजल मुख में डाल ले। परन्तु स्वास्थ्य अच्छा हो (तो) स्नान कर ले। (न करने से) बदबू भी आने लगती है।