७ ॥ श्री लाला रामसहाय जी ॥
जारी........
अर्थ धर्म अरु काम शुभाशुभ ज्ञान अगिनि हों हौन ॥७॥
राम सहाय विनय करैं हर दम होय न आवागौन ॥८॥
पद:-
सर्व शक्तीमान की जै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥१॥
तीनों रूप हैं एक ही जै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥२॥
कछु दया हम पर तो कीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥३॥
जिन्दगी बेकार छीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥४॥
दीन को दर्शन तो दीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥५॥
इस रंग में तन मन तो भीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥६॥
मम वचन पर कछु ध्यान दीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥७॥
राम सहाय को पास लीजै राम विष्णु व कृष्ण जी ॥८॥
पद:-
सुमिरन बिन माया गटकै हो सुमिरन बिन ॥१॥
काम क्रोध मद लोभ मोह लिये पकरि उठाय कै पटकै हो सुमिरन० ॥२॥
तन सराँय में बास करत है ढूँढ़ै मिलै नहिं खटकै हो सुमिरन० ॥३॥
पढ़ि सुनि के जे ज्ञान कथत हैं तिनको हर दम हटकै हो सुमिरन० ॥४॥
आगे बढ़न देति नहिं सुन्दरि बन्द करत वह फटकै हो सुमिरन० ॥५॥
दीन भाव ह्वै द्वैत मिटावै प्रेम लगै तब सटकै हो सुमिरन० ॥६॥
चित्त कि बृत्ति एकाग्र होय तब काहे जगत में भटकै हो सुमिरन० ॥७॥
राम सहाय दया सतगुरु की सो न अधो मुख लटकै हो सुमिरन० ॥८॥
पद:-
मान बड़ाई तो दुख का घर है ॥१॥
निशि दिन विघन भजन में डारै लै फिरि जावै नरक की डगर है ॥२॥
बाद बिबाद में आपु को भूले भइ यमराज की तिरछी नज़र है ॥३॥
गर्भ की बात भूलि के बैठे कब तक बचिहौ कहौ कुछ डर है ॥४॥
राम नाम की धुनि को जानौ हर शै से जो होत सुघर है ॥५॥
राम सहाय पार तब होइहौ सतगुरु बचन यही एक ज़र है ॥६॥
पद:-
बीती जात उमिरिया भजन बिन ॥१॥
लै उपदेश ज्ञान सिखलावैं जानत नाहिं डगरिया भजन० ॥२॥
मान गुमान तो छूटत नाहिं बोलत जैसे बकरिया भजन० ॥३॥
नाम रूप कछु जानि न पायो धिक बिवाद मुख करिया भजन० ॥४॥
शान्ति शील सन्तोष दीनता प्रेम नहीं उर धरिया भजन० ॥५॥
राम सहाय मिलो सतगुरु से लौटि न आवो नगरिया भजन० ॥६॥
पद:-
छोड़ो द्वैत के भाव को ह्वै दीन प्रेम लगाइये ॥१॥
श्री राम बिष्णु व कृष्ण शक्तिन सहित दर्शन पाइये ॥२॥
झाँकी सदा सन्मुख रहै तन सुफल नित गुन गाइये ॥३॥
अनहद बजै हो नाम धुनि लय दशा में फिर जाइये ॥४॥
सुर मुनि सबै बातैं करैं यह राजयोग बताइये ॥५॥
जियतै में मुक्ती भक्ति पद सतगुरु चरन चितलाइये ॥६॥
अति नीच बनि अभ्यास कीजै ऊँची गति पर जाइये ॥७॥
यह बिनय रामसहाय की आवागमन नसाइये ॥८॥
दोहा:-
हरि किरपानिधि यहाँ पर तीनों देंय भोगाय।
तब जग में आवै नहीं, हरि ढिग बैठै जाय ॥१॥
नाम खुलै तब होय यह, साँची दीन बताय।
हम से सतगुरु ने कही हिय में गई समाय ॥२॥
सबै वस्तु पासै अहैं, सूरति शब्द लगाव।
देखौ चरित विचित्र अति, जिव्हा नहीं डुलाव ॥३॥
अजपा जा को कहत हैं, जानि लेव गुरु पास।
मनसा वाचा कर्मणा, होहु राम के दास ॥४॥
रोम रोम ते नाम धुनि, होवै रा रा कार।
पार होहु संसार से, सत्य सत्य सुखसार ॥५॥
राम नाम सुमिरन करै, तन मन चित्त लगाय।
परारब्ध क्रियमान अरु, संचित जाय नशाय ॥६॥
जारी........