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२३ ॥ श्री ईसा जी ॥

जारी........


चौपाई:-

ईसा नाम हमार कहावा। ईश्वर अंश पुत्र उर भावा ॥१॥


दोहा:-

ईश्वर को जो जान ले, ईसा ताको नाम ।

हरदम रूप दिखात है रोम रोम धुनि नाम ॥१॥


शेर:-

माता पिता ने नाम मेरा था धरा याकूब ही ।

हरि ने धरा मम नाम ईसा पुत्र कहि मानौ सही ॥१॥

तब से मेरा यह भाव प्रभु में हो गया मम हैं पिता ।

सब प्रभू का अंश हैं सब के प्रभू सांचे पिता ॥२॥


दोहा:-

सब मे सब कछु हैं वही सब नहिं जानै ताहि ।

ईसा सतगुरु से समुझि ह्वै जा बेपरवाहि ॥१॥

सब में सब से हैं विलग सबैं वस्तु हैं आप ।

ईसा सतगुरु के बिना जानि न पैहौं आप ॥२॥