३१ ॥ श्री सुन्दरदास जी ॥
जारी........
चौपाई:-
जाय शरनि सतगुरु की लीजै। राम नाम को सुमिरन कीजै ॥१॥
देंय बताय नाम की विधि को। जानि जाव तुम करुणानिधि को ॥२॥
सतगुरु के ढिग ताली भाई। दीन्हेउ दीनबन्धु सुखदाई ॥३॥
दोहा:-
या से देरी ना करो, लै सतगुरु से शब्द ।
राम नाम सुमिरन करो, होय करम गति रद्द ॥१॥
ररंकार की धुनि खुलै, जो सब ऊपर मद्द ।
सन्मुख कृपानिधान हों, छूटि जाय सब भद्द ॥२॥
व्यंग वचन सब के सहो, लगै न तन मन कर्द ।
सुन्दर की यह विनय है, तब हो पूरे मर्द ॥३॥